नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अजीत पवार गुट को आगामी संसदीय और विधानसभा चुनावों में ‘घड़ी’ चुनाव चिन्ह और शरद पवार समूह को ‘तुरही बजाते हुए व्यक्ति’ चुनाव चिन्ह के रूप में उपयोग करने की मंगलवार को अनुमति दी।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने यह भी आदेश दिया कि ‘तुरही बजाते हुए आदमी’ का चिन्ह संसदीय और राज्य विधानसभा चुनावों में शरद पवार समूह के लिए आरक्षित प्रतीक होगा। अदालत ने श्री शरद पवार को अपनी पार्टी के नाम के रूप में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद चंद्र पवार) का उपयोग करने की अनुमति प्रदान की।
श्री शरद पवार ने चुनाव आयोग के छह फरवरी के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें अजित पवार के समूह को राकांपा के रूप में मान्यता दी गई थी और उसे ‘घड़ी’ का चुनाव चिन्ह दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अलग हुए समूह को वास्तविक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता देने के लिए ‘विधायी बहुमत परीक्षण’ को विश्वसनीयता देना उस पार्टी में विभाजन को मंजूरी देने जैसा होगा, जिसे दसवीं अनुसूची के तहत दल-बदल को रोकने के लिए हटा दिया गया है।
पीठ ने राजनीतिक दलों में दलबदल की मौजूदा प्रवृत्ति और चुनाव आयोग द्वारा वास्तविक अजीत पवार गुट को पार्टी के रूप में मान्यता दिया जाना पर चिंताजनक है। अजीत पवार समूह को पार्टी के नाम और प्रतीक का उपयोग करने की अनुमति दी गई है।
पीठ ने कहा,“जब चुनाव आयोग किसी गुट को केवल विधायी ताकत के आधार पर मान्यता दे रहा है न कि संगठनात्मक ताकत के आधार पर तो क्या वह विभाजन को मान्यता नहीं दे रहा है, जो अब दसवीं अनुसूची के तहत अनुमोदित नहीं है। इस तरह आप दलबदल कर सकते हैं और पार्टी के प्रतीक पर दावा कर सकते हैं। क्या यह मतदाताओं का मजाक नहीं होगा।”
शीर्ष अदालत ने 14 मार्च को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अजीत पवार समूह से पूछा था कि पार्टी के संस्थापक से अलग होने के बाद वह आगामी लोकसभा चुनाव में पोस्टरों में श्री शरद पवार की तस्वीर का इस्तेमाल करने को क्यों उत्सुक है।
जुलाई 2023 में अजीत पवार और उनके नेतृत्व में राकांपा के आठ अन्य विधायक अचानक एकनाथ शिंदे की शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की गठबंधन वाली महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो गए थे।
इसके बाद पार्टी पर हक को लेकर चाचा- शरद पवार और भतीजे -अजीत पवार के बीच विवाद शुरू हो गया था। इसके बाद यह मामला विधानसभा अध्यक्ष के अलावा चुनाव आयोग के पास भी पहुंचा था।
छह महीने से अधिक समय तक चली 10 से अधिक तारीखों पर सुनवाई के बाद चुनाव आयोग ने अजित पवार गुट को राकांपा और प्रतीक चिन्ह ‘घड़ी’ पर नियंत्रण देने के लिए विधायी बहुमत का परीक्षण लागू किया।
आयोग ने फैसले के लिए ‘पार्टी संविधान के लक्ष्यों और उद्देश्यों का परीक्षण’, ‘पार्टी संविधान का परीक्षण’ का भी उपयोग किया।
विधानसभा अध्यक्ष ने भी 15 फरवरी को अजीत पवार गुट के पक्ष में फैसला दिया था।
अजीत पवार गुट ने चुनाव आयोग के समक्ष पेश हलफनामे में राकांपा के कुल 81 विधायकों में से 57 के समर्थन हासिल होने का दावा किया था, जबकि उनके चाचा शरद पवार गुट को मात्र 28 विधायकों का साथ होने की बात कही गई।