नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि संगठित अपराध किसी ‘‘खास राज्य’’ तक सीमित नहीं है और कोई निचली अदालत कठोर मकोका लगाने के लिए अपराधियों के खिलाफ राज्य के बाहर दायर किए गए आरोपपत्रों का संज्ञान ले सकती है। महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून संगठित अपराधों पर रोक लगाने के लिए अपराधियों के खिलाफ लगाया जाता है। यह कानून दिल्ली में भी लागू है।
न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने उक्त टिप्पणी उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए की। उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के कथित गैंगस्टर बृजेश सिंह को कई आधारों पर मकोका के तहत आरोपों से आरोप मुक्त करने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। इन आधारों में एक आधार संगठित अपराध गिरोह चलाने को लेकर आरोप पत्र राष्ट्रीय राजधानी के बाहर दायर करना भी शामिल था।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि मकोका की धारा 2 में दिया गया शब्द ‘सक्षम अदालत’ दिल्ली में अदालतों तक सीमित नहीं है और सतत गैर कानूनी गतिविधि स्थापित करने के उद्देश्य के लिये अन्य राज्यों में दायर आरोपपत्रों का भी संज्ञान लिया जा सकता है।
पीठ ने 34 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा, ‘‘मकोका समाज के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहे संगठित अपराध को रोकने के उद्देश्य से लागू किया गया था। मकोका के प्रावधानों की व्याख्या इस ढंग से की जानी चाहिए जो मकोका के उद्देश्य को आगे बढ़ाए।’’ न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि संगठित अपराध ने नागरिक समाज के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न किया और संगठित अपराध समूहों की आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश के लिए विशेष प्रावधान बनाए जाने की आवश्यकता थी।
शीर्ष अदालत ने इस सवाल पर विचार किया कि ‘‘लगातार जारी गैर कानूनी गतिविधि’’ को स्थापित करने के उद्देश्य के लिये और अपराधियों के खिलाफ मकोका के तहत मामला दर्ज करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के बाहर सक्षम अदालतों में दायर आरोपपत्रों का संज्ञान लिया जा सकता है या नहीं। इसने इस सवाल पर भी गौर किया कि किसी खास अदालत के अधिकारक्षेत्र में कोई संगठित अपराध हुए बिना क्या मकोका के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी कि मकोका के तहत शब्द ‘सक्षम अदालत’ किसी खास राज्य की अदालतों तक सीमित नहीं है, जहां यह कानून लागू है और लगातार जारी गैर कानूनी गतिविधि स्थापित करने के लिए अन्य राज्यों की अदालतों में दायर आरोपपत्रों का भी संज्ञान लिया जा सकता है। इसने यह भी व्यवस्था दी कि दिल्ली के भीतर संगठित अपराध हुए बिना अपराधी पर मकोका के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।