Breaking News

अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में दिखेगी छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति की झलक

नयी दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी के प्रगति मैदान में चल रहे 41वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में 21 नवम्बर को एम्फी थियेटर में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जायेगा जिसमें छत्तीसगढ़ की समृद्ध कला और संस्कृति को प्रतिबिम्बित करती लोकनृत्यों का प्रदर्शन किया जायेगा।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सांस्कृतिक संध्या का उदघाटन करेंगे। वह छत्तीसगढ़ पवेलियन का भ्रमण कर स्टालों का अवलोकन भी करेंगे।

सांस्कृतिक संध्या में छत्तीसगढ़ की छत्तीसगढ़ से आए लोक कलाकार गौर ,परब , भोजली , गेड़ी , सुआ , पंथी और करमा नृत्यों की प्रस्तुति देंगे।

छत्तीसगढ़ के लोकनृत्यों में प्रमुख सुआ नृत्य आमतौर पर गौरा विवाह के अवसर पर किया जाता है। यह मूलतः महिलाओं और किशोरियों का नृत्य है। इस नृत्य में महिलाएं एक टोकरी में सुआ (मिट्टी का बना तोता) को रखकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं और सुआ गीत गाती हैं। गोल गोल घूम कर इस नृत्य को किया जाता है तथा हाथ से या लकड़ी के टुकड़े से ताली बजाई जाती है। इस नृत्य के समापन पर शिव गौरी विवाह का आयोजन किया जाता हैं। इसे गौरी नृत्य भी कहा जाता है।

परब नृत्य छत्तीसगढ़ में आदिवासीबहुल बस्तर क्षेत्र में निवास करने वाले धुरवा जनजाति के द्वारा किया जाता है। यह नृत्य महिला एवं पुरुष साथ मिलकर बांसुरी, ऑलखाजा तथा ढोल बजाते हुए करते हैं , जिसमें पिरामिड जैसा दृश्य दिखाई पड़ता है। इस नृत्य को सैनिक नृत्य कहा जाता है, क्योंकि नर्तक नृत्य के दौरान वीरता के प्रतीक चिन्ह कुल्हाड़ी और तलवार लिए होते हैं। इस नृत्य का आयोजन मड़ई के अवसर पर किया जाता है।

पंथी नृत्य न केवल छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है, बल्कि इसे प्रदेश के सतनामी समुदाय का एक प्रमुख रिवाज अथवा समारोह भी माना जाता है। यह नृत्य माघ पूर्णिमा में होने वाले गुरु घासीदास की जयंती के उत्सव के दौरान किया जाता है। लोग इस

नृत्य के माध्यम से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। किसी भी नृत्य शैली की तरह, यह भी कई चरणों और पैटर्न का एक संयोजन है। हालाँकि, जो चीज इसे अद्वितीय बनाती है, वह यह है कि यह अपने पवित्र गुरु की शिक्षाओं को दर्शाते हैं।

गेंड़ी नृत्य संपूर्ण छत्तीसगढ़ में प्रचलित है। बस्तर में इसे मुड़िया जनजाति द्वारा सावन माह में हरेली के अवसर पर किया जाता है। यह पुरुष प्रधान नृत्य है, जिसमें पुरुष तीव्र गति और कुशलता के साथ गेड़ी पर शारीरिक संतुलन को बरकरार रखते हुए नृत्य करते हैं। यह नृत्य शारीरिक कौशल और संतुलन को प्रदर्शित करता है।

करमा छत्तीसगढ़ का पारम्परिक नृत्य है। इसे करमा देव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस नृत्य में पारंपरिक पोषक पहनकर लोग नृत्य करते है और छत्तीसगढ़ी गीत गाते है। छत्तीसगढ़ का यह लोक नृत्य आमतौर पर राज्य के आदिवासी समूहों जैसे गोंड,उरांव, बैगा आदि द्वारा किया जाता है। यह नृत्य वर्षा ऋतु के अंत और वसंत ऋतु की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए किया जाता है। इस नृत्य प्रदर्शन में गांवों के पुरुष और महिलाएं दोनों भाग लेते हैं। कर्मा नृत्य के लिए कलाकारों की टीम में एक प्रमुख गायक भी होता है।

गौर नृत्य को बस्तर में निवासरत मारिया जनजाति के द्वारा जात्रा पर्व के अवसर पर किया जाता है। इस नृत्य में युवक सिर पर गौर के सिंह को कौड़ियों से सजाकर उसका मुकुट बनाकर पहनते हैं । अतः इस नृत्य को गौर नित्य भी कहा जाता है। इस नृत्य में केवल पुरुष भाग लेते हैं। महिलाएं केवल वाद्य यंत्र को बजाती है जिसे तिर्तुडडी कहते हैं।

उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में छत्तीसगढ़ पवेलियन में ‘गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ की झलक देखने को मिल रही है। पवेलियन में सशक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते छत्तीसगढ़ की झलकियां पेश की जा रही है।