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अंतिम सांस तक सामाजिक न्याय की आवाज उठाती रहूंगी: अनुप्रिया पटेल

लखनऊ, अपना दल (एस) अध्यक्ष और केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने जातीय जनगणना की मांग को जायज ठहराते हुये मंगलवार काे कहा कि वह अंतिम सांस तक सामाजिक न्याय की आवाज को बुलंद करती रहेंगी।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बनने के बाद पहली बार लखनऊ आयी श्रीमती पटेल का स्वागत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग महासंघ ने कैसरबाग स्थित गांधी भवन में किया। इस अवसर पर उन्होने कहा “ डॉ.सोनेलाल पटेल ने जिस उद्देश्य को लेकर अपना दल की स्थापना की थी। उनकी बेटी के तौर पर मैं अंतिम सांस तक सामाजिक न्याय की आवाज को बुलंद करती रहूंगी। ” वह सड़क से लेकर संसद तक पिछड़ों, दलित, आदिवासी भाइयों की आवाज को निरंतर उठा रही हैं और आगे भी इसी मजबूती से उठाती रहेंगी।

उन्होने कहा कि अपना दल एस के निरंतर आवाज उठाने का ही प्रतिफल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल चुका है। सैनिक स्कूलों एवं नवोदय स्कूलों में प्रवेश के लिए ओबीसी के मेधावी बच्चों को 27 प्रतिशत आरक्षण का सपना साकार हो चुका है। मेडिकल एंट्रेंस नीट में ओबीसी आरक्षण में ऑल इंडिया कोटा लागू हो चुका है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 13 सूत्री रोस्टर प्रणाली के खिलाफ उन्होने संसद में आवाज उठायी, जिसकी वजह से केंद्र सरकार को पुन: 200 सूत्री रोस्टर प्रणाली को लागू करना पड़ा।

श्रीमती पटेल ने महासंघ के पदाधिकारियों से वायदा किया कि पिछड़ों, दलितों, आदिवासी भाइयों की आवाज को निरंतर उठाती रहेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि सामाजिक न्याय के किसी भी मुद्दे पर महासंघ के पदाधिकारी कभी भी उनसे मुलाकात कर सकते हैं और अपनी बात रख सकते हैं।

उन्होने कहा कि जातीय जनगणना आज देश की मांग है। अपना दल की तरफ से वह पिछले सात सालों से संसद में निरंतर आवाज उठा रही हूं। जातीय जनगणना पूरा होने से समाज के गरीब, दलित व अन्य पिछड़ी जातियों की वास्तविक संख्या की जानकारी मिलेगी, जिससे समाज के अंतिम पंक्ति पर खड़े इन दबे-कुचले गरीब के विकास के लिए योजनाओं का खाका तैयार किया जाएगा।

श्रीमती पटेल ने कहा कि अल्पसंख्यक मंत्रालय की तर्ज पर ओबीसी मंत्रालय के गठन की वह लगातार मांग कर रही हैं और आशा है कि पिछड़ों का यह सपना भी जल्द साकार होगा। उन्होने पिछड़ा समाज से आह्वान किया कि 2022 में सत्ता की कुंजी पिछड़ों के पास ही होनी चाहिए। बदलते दौर के साथ अब हमारे पिछड़ा वर्ग के होनहार बच्चों का कट ऑफ भी सामान्य से ज्यादा आ रहा है, जो कि एक चिंता का विषय है। पिछड़ा समाज अपने अधिकारों को लेकर सजग रहे और निरंतर आवाज उठाता रहे। हक मांगने से नहीं मिलता है, बल्कि उसके लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है। हमें भी संघर्ष करना है।