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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर नेशनल मेमोरियल के शिलान्यास के अवसर पर कहा कि हम बाबा साहेब को दलितों का मसीहा बताकर अन्याय करते हैं। उन्हें सीमित न करें। वे हर वर्ग के शोषित, कुचले, दबे लोगों की आवाज बनते थे। उन्होने कहा कि बाबा साहेब को सीमाओं में न बांधे। उन्हें विश्व मानवता के रूप में देखें। दुनिया मार्टिन लूथर किंग काे जिस तरह देखती है, उसी तरह हमारे लिए बाबा साहेब अंबेडकर हैं।”
मोदी ने कहा कि जिसका बचपन अन्याय, उपेक्षा, उत्पीड़न में बीता हो, जिसने अपनी मां को अपमानित होते देखा हो, मुझे बताइए वह मौका मिलते ही क्या करेगा? और स्वयं उत्तर देते हु ये कहा कि वह यही कहेगा कि तुम मुझे पानी नहीं भरने देते थे, तुम मुझे मंदिर नहीं जाने देते थे, तुम मेरे बच्चों को स्कूल में एडमिशन नहीं लेने देते थे।”
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारे देश में इतिहास को या तो दबोचा जाता है या डायल्यूट किया जाता है। एक बार बाबा साहेब को मंत्रि परिषद से इस्तीफा की नौबत आ गई थी। उनके समय एक बिल पर काम चल रहा था। बिल में महिलाओं को संपत्ति-परिवार में समान हक दिलाने का जिक्र था। ये टाटा-बिड़ला की बेटियों के साथ-साथ दलित बेटियों के लिए भी था। उस वक्त की सरकार इन प्रोग्रेसिव बातों के खिलाफ थी। यह कहा गया कि बेटी तो बहू बनकर चली जाती है। ये कैसे होगा। ऐसे वक्त पर बाबा साहब को लगा कि अगर भारत की नारी को हक नहीं मिला तो फिर उस सरकार का हिस्सा भी नहीं बन सकते। उन्होंने वह सरकार छोड़ दी थी। जो बातें बाबा साहब ने सोची थी, वो बाद में बदलते वक्त और सोच के साथ सरकार को माननी पड़ी।
बाबा साहब को मौका नहीं मिलने का देश को घाटा हुआ।
मोदी ने कहा कि हमने बजट में देश में तालाब और वाटर-वे के प्रावधान किए हैं। ये मूल विचार बाबा साहेब अंबेडकर के थे, जिन्होंने उस वक्त भारत के वाटर-वे की ताकत काे समझा था। उसे वे आगे बढ़ाना चाहते थे। लंबे वक्त तक उन्हें सरकार में सेवा का मौका मिलता तो जो फैसला हमने अभी किया, वह 60 साल पहले हो जाता।”