पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के त्रिवेणी तट पर लाखों की संख्या में कल्पवास करने वाले श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आए हैं। अलग-अलग जाति, वर्ग, भाषा को बोलने वाले साथ मिलकर महाकुंभ की परंपराओं का पालन कर रहे हैं। महाकुम्भ में अमीर, गरीब, व्यापारी, अधिकारी सभी तरह के भेदभाव भुलाकर एक साथ एक भाव में संगम में डुबकी लगा रहे हैं।
महाकुंभ और मां गंगा, नर, नारी, किन्नर, शहरी, ग्रामीण, गुजराती, राजस्थानी, कश्मीरी, मलयाली किसी में भेद नहीं करती। अनादि काल से सनातन संस्कृति की समता,एकता कि ये परंपरा प्रयागराज में संगम तट पर महाकुंभ में अनवरत चलती आ रही है।
दुनिया भर के कई देशों के श्रद्धालु भी पहुंचे और जय श्री राम, हर हर गंगे, बम बम भोले के उद्घोष के साथ भारतीय जनमानस के साथ घुल मिल गए। अमृत स्नान पर महाकुम्भ नगर में एकता का महाकुम्भ नजर आया। यहां भारत की सनातन संस्कृति से अभिभूत विदेशी नागरिकों ने परिवार के साथ पहुंचकर गंगा स्नान किया। जय श्री राम, हर हर गंगे का नारा लगाकर लोग उत्साह से लबरेज नजर आए। अमेरिकी, इजरायली, फ्रांसीसी समेत कई अन्य देशों के नागरिक गंगा स्नान करते हुए भारत की सनातन संस्कृति से अभिभूत हुए। वे भी बम बम भोले के नारे लगाते हुए उत्साह से झूमते नजर आए।
महाकुंभ विश्व का सबसे बड़ा मानवीय और आध्यात्मिक सम्मेलन है। यूनेस्को ने महाकुम्भ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है। सीएम योगी का मानना है कि महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समायी हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रतीक है। यहां सब एक समान हैं। करोड़ों लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ त्रिवेणी संगम में डुबकी लगा रहे हैं। श्रद्धालु, समस्त साधु, संन्यासियों का आशीर्वाद ले रहे हैं, मंदिरों में दर्शन कर अन्नक्षेत्र में एक ही पंगत में बैठ कर भण्डारों में खाना खा रहे हैं। महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समायी हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रदर्शन स्थल है, जिसे दुनिया भर से आये पर्यटक देखकर आश्चर्यचकित हैं।