नयी दिल्ली, मोदी सरकार ने आज ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को हटाने तथा राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख में बांटने का निर्णय लिया है। केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की अपनी विधानसभा होगी जबकि लद्दाख में विधानसभा का प्रावधान नहीं रखा गया है। राजनीतिक रुप से दूरगामी प्रभाव वाले सरकार के इन असाधारण फैसलों से जम्मू-कश्मीर को लेकर पिछले सप्ताह से चली आ रही अटकलबाजियों पर विराम लग गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में सोमवार सुबह पहले सुरक्षा मामलों की समिति और फिर केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इन फैसलों पर मुहर लगायी गयी। इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ अपने आवास पर लगभग एक घंटे तक गहन विचार मंथन किया। संसद पहुंच कर गृह मंत्री शाह ने विपक्ष के कड़े विरोध और भारी शोरशराबे के बीच राज्य को दो हिस्सों में बांटने से संबंधित ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019’ तथा संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड एक को छोड़कर अन्य सभी खंडों को निष्प्रभावी करने तथा 35 ए को समाप्त करने संंबंधी संकल्प राज्यसभा में पेश किये।
इसके तुरंत बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को विशेष अधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35 ए को समाप्त करने से संबंधित अधिसूचना जारी कर दी। इस अधिसूचना के माध्यम से राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड ‘एक’ के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए अनुच्छेद 35 ‘ए’ यानि संविधान (जम्मू कश्मीर में लागू ) आदेश 1954 को निरस्त कर दिया। अब नये आदेश संविधान (जम्मू कश्मीर में लागू) आदेश 2019 इसकी जगह ले ली है। यह तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है। अनुच्छेद 35 ‘ए’ राज्य के लोगों की पहचान और उनके विशेष अधिकारों से संबंधित था।
पुनर्गठन विधेयक के अनुसार केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की अलग से विधानसभा होगी लेकिन केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी। अनुच्छेद 35 ए के तहत राज्य के लोगों को स्थायी नागरिक के तौर पर विशेष अधिकार और पहचान मिली हुई थी। इसमें विभाजन के समय पाकिस्तान से आये शरणार्थियों को स्थायी नागरिक नहीं माना गया था। अन्य प्रावधानों के अनुसार देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोग जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते और न ही उन्हें सरकारी विभागों में नौकरी का अधिकार था। जम्मू-कश्मीर की किसी भी महिला को राज्य से बाहर के व्यक्ति के साथ विवाह के बाद अपने इन सभी अधिकारों को छोड़ना पड़ता था।