आप किसी भी स्कूल में चारों ओर देखें तो आप पाएंगे कि बच्चे कुछ दशक पहले की तुलना में अधिक वजन वाले हो गए हैं। हालांकि बच्चों के वजन बढ़ने की समस्याओं के लिए कई कारक जिम्मेदार होते हैं, लेकिन शुगर का अत्यधिक सेवन इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है। इसलिए, हम वयस्कों को न सिर्फ खुद के द्वारा सेवन की जाने वाली शुगर की मात्रा पर नजर रखनी है, बल्कि यह बच्चों में भी कई जटिलताएं पैदा कर सकती हैं। ऐसा क्यों होता है, आइए हम इस पर नजर डालते हैं। माता-पिता के रूप में हम, विशेष रूप से माताएं अपने बच्चों को पेट भरने से कहीं अधिक खिलाना चाहती हैं। एक आम धारणा है कि बेबी फैट अच्छा होता है। दुबला- पतला बच्चा कमजोर और यहां तक कि कुपोषित भी माना जाता है, जबकि मोटा बच्चा समृद्ध और स्वस्थ माना जाता है और इस तरह यह परिवार की वित्तीय स्थिति को भी दर्शाता है। इसके अलावा, बच्चे अपने वजन को लेकर चिंतित नहीं होते हैं बल्कि खुशी पूर्वक लापरवाह होते हैं। इसलिए, वे अपने भोजन का चयन पूरी तरह से अपने स्वाद के अनुसार करते हैं। इसलिए, जब शुगर की बात आती है, तो बच्चों के पास कोई वजह नहीं होती है कि वे इसके बारे में अधिक सोचें।
यह प्रवृत्ति बच्चों को वजन बढ़ने के प्रति न सिर्फ अत्यधिक संवेदनशील बना सकती है बल्कि कम उम्र्र में ही उनमें कई प्रकार की बीमारियां भी पैदा कर सकती हैं। सुप्रसिद्ध जर्नल ओबेसिटी में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में तर्क दिया गया है कि चीनी न सिर्फ इसलिए बुरी है क्योंकि यह आपके वजन को बढ़ाती है, बल्कि यह शरीर के चयापचय में भी अधिक परिवर्तन ला सकती है। शोधकर्ताओं ने 9 साल से 18 साल उम्र के वैसे 43 मोटे बच्चों में, जिनमंे उच्च रक्तचाप या उच्च ट्राइग्लिसराइड्स या फैटी लीवर के मार्कर जैसी कम से कम एक अन्य चयापचय से संबंधित समस्या थी, उनमें शुगर पर प्रतिबंध के प्रभाव का अध्ययन किया। नौ दिनों तक किये गए अध्ययन के तहत, उन्हें शुगर-प्रतिबंधित आहार का सेवन कराया गया, लेकिन शुगर के लिए स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट में प्रतिस्थापन के द्वारा उनकी कैलोरी को स्थिर रखा गया।
नवें दिन के अंत में, बच्चों के औसत डायस्टोलिक रक्तचाप में 5 एमएमएचजी की कमी हुई; उनका ट्राइग्लिसराइड्स 33 प्वाइंट तक कम हो गया; उनका एलडीएल कोलेस्ट्रॉल 10 प्वाइंट तक नीचे चला गया; इंसुलिन का स्तर एक तिहाई कम हो गया और फास्टिंग ग्लूकोज और लीवर फंक्शन टेस्ट में सुधार हुआ। इसके आधार पर शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि ‘कैलोरी सिर्फ कैलोरी नहीं होती है’। कैलोरी जहां से आती है, निर्धारित करती है कि उसे शरीर में कहां जाना है। निष्कर्षों का समर्थन करते हुए, ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रीशन’ में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि अधिक शुगर और अन्य परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट वाले आहार के हानिकारक प्रभावों में से एक हानिकारक प्रभाव यह है कि यह आपमें टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा पैदा करता है। यदि आपको पहले से ही मधुमेह है, चाहे वह टाइप 1, टाइप 2 या गर्भावधि का मधुमेह हो, आपके आहार में बहुत ज्यादा चीनी आपके रक्त शर्करा के स्तर को स्वस्थ सीमा में रखने में रुकावट पैदा कर सकता है।
इससे हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। इससे भी अधिक, शुगर आपके लीवर पर अधिक भार डाल सकती है और आपके लीचर को नुकसान पहुंचा सकती है। इसके अलावा, सभी प्रकार के शुगर दंत क्षय को बढ़ावा देते हैं।’’ इसके अलावा, यदि आपको हर भोजन में शुगर खाने की आदत है, तो इसका मतलब है कि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली दिन में अधिकांश समय आधी क्षमता से कार्य करेगी। यदि आप शुगर के सेवन से पूरी तरह से बच नहीं सकते हैं, तो इसके सेवन को सीमित करने का प्रयास करें। वैज्ञानिक प्रगति धन्यवाद का पात्र है, क्योंकि इससे बचाव के लिए हमारे पास कृत्रिम स्वीटनर्स हंै। बाजार में ब्रांडों की एक विस्तृत रेंज उपलब्ध है जो आपके वजन से संबंधित समस्याओं का समाधान करने में आपकी मदद करने के लिए कम कैलोरी से शून्य कैलोरी तक की सामग्रियों की पेशकश करते हैं। और ये सिर्फ मीठे का सेवन न कर पाने के कष्ट का संघर्ष करने वाले मधुमेह पीड़ितों के लिए नहीं हैं। इन विकल्पों के नियमित उपयोग की सिफारिश मुंह के बेहतर स्वास्थ्य के लिए भी की गयी है। यदि आप शुगर का सेवन नहीं करेंगे, तो आपके दांतों में क्षरण नहीं होगा, और आपके स्वाद में भी वृद्धि होगी। इस तरह, शुगर से परहेज के दोहरे फायदे हैं।
इसके अलावा, आपको अपने शुगर युक्त मीठे पेय, बिस्किट और केक की जगह स्वस्थ नाश्ता के विकल्प का चयन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, हमेशा खजूर, केला, अंगूर और लीची या नट्स जैसे स्वाभाविक रूप से मीठे फल को अपने पास रखना चाहिए। ये न सिर्फ मिठाई की तलब को संतुष्ट करेंगे, बल्कि आप फाइबर, विटामिन और खनिज भी प्राप्त कर सकेंगे। 2-3 घंटे के अंतराल पर नियमित रूप से खाने से भी मीठा खाने की तलब को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थाें के सेवन से बचें और इनकी बजाय साबुत खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करें। ओमेगा -3, संतृप्त, और मोनो संतृप्त वसा जैसे स्वस्थ वसा का अधिक सेवन करें। अपने भोजन में दही, इडली और ढोकला जैसे अधिक किण्वित खाद्य पदार्थों का सेवन करें। इन खाद्य पदार्थों में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया पाचन में मदद करते हैं और डिटाॅक्सिफिकेशन करते हैं, जिससे आपके लीवर पर भार को कम करने में मदद मिलती है।’’ जितना आप सोचतेे हैं, स्वास्थ्यकर विकल्प अपनाना उससे कहीं अधिक आसान है। आप सभी को इसे अभी शुरू करने की जरूरत है। स्वस्थ आहार का सेवन करें और फिट रहें।