प्रयागराज, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गिरिजाघर को सील करने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा है कि आप किसी को प्रार्थना करने से कैसे रोक सकते हैं। मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने आश्रय चैरिटेबल ट्रस्ट व अन्य की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है।
याचियों की ओर से कहा गया कि उन्होंने कौशांबी जिले मुहम्मदपुर गांव में चर्च की स्थापना की है। एक हिंदू नेता द्वारा अपने ट्विटर पर धर्म परिवर्तन की जानकारी प्रसारित करने के कारण अधिकारियों द्वारा गैरकानूनी तरीके से सील कर दिया गया। ऐसा कर उन्हें प्रार्थना करने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। यह प्रार्थना प्रत्येक रविवार को होती है। दूसरी ओर से राज्य के अधिवक्ताओं की ओर से कहा गया कि चर्च परिसर का इस्तेमाल जबरन धर्म परिवर्तन के लिए किया जा रहा था। इसलिए सील किया गया। याचिका का दूसरा याची धर्म परिवर्तन करने के मामले में गिरफ्तार भी किया गया है। इस मामले में आरोप पत्र भी दाखिल हो चुका है।
याची के अधिवक्ता ने कहा कि विचाराधीन स्थान छोटा कमरा था, जहां समुदाय के लोग एकत्र हुए थे और प्रार्थना की थी। दूसरी ओर से राज्य के अधिवक्ता ने कहा कि छोटे जिलोंं में व्यक्ति अक्सर छोटे कमरे हासिल कर धार्मिक गतिविधियों की आड़ में जबरन धर्मांतरण कराते हैं। कोर्ट ने दोनों पक्षों से शपथपत्रों के आदान-प्रदान करने के बाद मामले को सूचीबद्ध करने के लिए कहा है।