उज्जैन, दलितों के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने चल रहे सिंहस्थ कुंभ मेले की सफाई व्यवस्था में लगे पुरुष एवं महिला सफाईकर्मियों के साथ दोपहर का भोजन किया। भागवत ने श्री गुरू काष्र्णि आश्रम में सफाईकर्मियों के साथ बैठकर भोजन ग्रहण किया।
आश्रम के महंत स्वामी ओमकारनंदजी ने बताया कि आश्रम प्रबंधन द्वारा इस कार्यक्रम के लिये लगभग 1200 सफाईकर्मियों को बुलाया गया था। इस मौके पर पुरुषों को कमीज और पतलून जबकि महिलाओं को साड़ी और 100 रुपये नकद भेंट किये गये।
भागवत ने क्षिप्रा नदी के घाट पर कुछ आदिवासियों के साथ स्नान भी किया था। स्नान के बाद आरएसएस प्रमुख ने वनवासी कल्याण परिषद द्वारा आयोजित जनजाति सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हिन्दू संस्कृति की उत्पति आदिवासी समुदाय से हुई है।
उन्होंने सम्मेलन में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों से आये आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधियों को कहा, आदिवासी समुदाय जंगलों में रहता आया है और जंगलों से जुड़े होने की भावना के कारण सदियों से उसकी रक्षा करता रहा है। वह जंगलों से मिलने वाला धन-धान्य देश को देता है, जो सबके उपयोग में आता है।
उन्होंने कहा, अपनेपन की सोच और आपसी आदान-प्रदान हिन्दू धर्म का सिद्धांत है। भागवत ने कहा कि अब समय आ गया है कि आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधियों को अपने समाज लिये खड़ा होना पड़ेगा और अपने अधिकारों के लिये आवाज उठानी होगी। उन्होंने सम्मेलन में अंग्रेजी में कहा, दोज हू हेल्प देमसेल्फ, गॉड विल हेल्प देम (जो अपनी मदद स्वयं करता है, भगवान उसकी मदद करते हैं)। भागवत के आदिवासियों से मिलने-जुलने को आदिवासियों को आकर्षित करने के प्रयास के तौर पर माना जा रहा है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा पिछले साल बिहार में विधानसभा चुनाव के दौरान आरक्षण नीति की समीक्षा की जरूरत का मुद्दा उठाकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को कथित तौर पर नाराज कर दिया था।
माना जा रहा है भागवत का यह बयान भाजपा पर उल्टा पड़ा था और इस वजह से बिहार के जाति आधारित विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। बिहार चुनावों में हार के बाद कई भाजपा नेताओं ने भागवत के इस बयान की और उंगुली उठाई थी। आरएसएस द्वारा आदिवासियों और दलित वर्ग को आकर्षित करने के लिये इस वर्ष सामाजिक समरसता नामक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है।
मध्यप्रदेश में संघ तीन जनवरी से 10 जनवरी के बीच अपनी शाखाओं में पहले ही सामाजिक समरसता विषय पर विचार-विमर्श कर चुका है। संघ के एक नेता ने बताया कि सामाजिक समरसता योजना के साथ हम दलित और आदिवासी वर्ग के लोगों के साथ भोजन और एक साथ इकमहामेधा होने का कार्यक्रम पहले ही शुरू कर चुके हैं।