आरक्षण के खिलाफ न्यायाधीश की ‘असंवैधानिक’ टिप्पणी पर सांसदों ने की महाभियोग चलाने की मांग

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Justice-J-B-Paridwala-minगुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जे बी परदीवाला के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही चलाने का अनुरोध राज्यसभा के 58 सदस्यों ने सभापति को एक याचिका देकर किया है। उनके खिलाफ यह याचिका हार्दिक पटेल मामले में उनके द्वारा आरक्षण के खिलाफ की गयी कथित ‘असंवैधानिक’ टिप्पणी के कारण दी गयी है।

राज्यसभा के इन सदस्यों ने आरोप लगाया कि हार्दिक पटेल के खिलाफ विशेष आपराधिक आवेदन पर फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति परदीवाला ने व्यवस्था दी थी कि दो चीजों ने ‘इस देश को तबाह कर दिया या इस देश की सही दिशा में प्रगति नहीं हुई. (एक) आरक्षण और (दूसरा) भ्रष्टाचार।’याचिका में कहा गया, ‘यह परेशान करने वाली बात है कि न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए नीति के बारे में संवैधानिक प्रावधानों से अनभिज्ञ हैं।’ सांसदों की याचिका में कहा गया कि चूंकि न्यायाधीश की टिप्पणी न्यायिक कार्यवाही का अंग बन गयी है, ‘इसकी प्रकृति असंवैधानिक है तथा यह भारत के संविधान के प्रति कदाचारपूर्ण व्यवहार है। इससे महाभियोग का आधार बनता है।’सांसदों ने राज्यसभा सभापति हामिद अंसारी से अनुरोध किया है कि वह न्यायमूर्ति परदीवाला के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करें। उन्होंने याचिका के साथ संबंधित दस्तावेज संलग्न किए हैं। राज्यसभा सचिवालय ने इस याचिका के प्राप्त होने की पुष्टि की है तथा बताया कि यह विचाराधीन है।
याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों में आनंद शर्मा, दिग्विजय सिंह, अश्विनी कुमार, पी एल पुनिया, राजीव शुक्ला, आस्कर फर्नाडिस, अंबिका सोनी, बी के हरिप्रसाद (सभी कांग्रेस), डी राजा (भाकपा), के एन बालगोपाल (माकपा), शरद यादव (जदयू), सतीश चंद्र मिश्रा एवं नरेन्द्र कुमार कश्यप (बसपा), तिरूचि शिवा (द्रमुक) एवं डी पी त्रिपाठी (राकांपा) शामिल हैं।
याचिका में कहा गया कि न्यायाधीश ने इस बात का भी उल्लेख किया कि ‘जब हमारा संविधान बनाया गया तो यह समझा गया कि आरक्षण दस वर्ष की अवधि के लिए रहेगा किन्तु दुर्भाग्यवश यह आजादी के 65 वर्ष बाद भी जारी है।’ सांसदों ने कहा कि दस वर्ष की सीमा राजनीतिक आरक्षण यथा केन्द्र एवं राज्य विधायिका में अनुसूचित जाति एवं जनजातियों का प्रतिनिधित्व के लिए थी। शिक्षा एवं रोजगार में आरक्षण के लिए नहीं।

राज्यसभा में महाभियोग संबंधी याचिका देने के लिए इस पर न्यूनतम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए। लोकसभा में इसके लिए न्यूनतम 100 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए। संसद की अजा एवं अजजा संबंधित स्थायी समिति के सदस्यों ने कल पार्टी लाइन से उपर उठते हुए गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की आरक्षण विरोधी टिप्पणी की आलोचना की थी और उनको महाभियोग कार्यवाही के प्रति आगाह किया था।
समिति ने अपनी बैठक में तय किया कि उसके सदस्य न्यायमूर्ति परदीवाला की इस टिप्पणी के खिलाफ 23 दिसंबर को बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमा के समक्ष धरना देंगे। इस बैठक में अन्य के साथ साथ केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान एवं थावरचंद गहलोत ने हिस्सा लिया था।

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