आसमान में हिलोंरे मारती अनूठे प्रयोगों का भी अंग रही है पतंग

प्रयागराज, मकर संक्रांति के अवसर पर फिजा में डोलती बेलगाम डोर थामने वालों को आसमान की ऊंचाइयां बख्सने वाली अपने ढ़ाई हजार साल से अधिक पुराने इतिहास में अनेकों मान्यताओं, अंधविश्वासों और अनूठे प्रयोगों का आधार भी रही है, पतंग।

अपने पंखों पर विजय और वर्चसव को लेकर उड़ती पतंग ने अलग-अलग रूपों में दुनिया को न/न सिर्फ एक रोमांचक खेल का जरिया दिया बल्कि एक शौक के रूप में यह विश्व की सभ्यताओं और संस्कृतियों में रच बस गई। पतंग उडाने का शौक चीन, कोरिया, और थाईलैंड समेत दुनिया के कई अन्य हिस्सों से होकर भारत में पहुंचा। देखते ही देखते यह शौक भारत में एक शगल बनकर यहां की संस्कृति और सभ्यता में रच-बस गया।

हिंदू धर्म में मकर संक्रांति अलग-अलग प्रांतो में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। इस पर्व का महत्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश (संक्रांति) से जुड़ा है और यह पर्व सूर्य देवता को ही समर्पित है। इसे विज्ञान, अध्यात्म और कृषि से संबंधित कई पहलुओं के लिए मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण के समय को देवताओं का दिन माना जाता है। इस दिन से शुभ और कार्य शुरू हो जाते हैं।

भगवान सूर्य के उत्तरायण के दौरान पतंग उड़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है और इसका सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। समय के साथ साथ यह जीवंत उत्सव के रूप में विकसित हुआ और 1989 में अहमदाबाद में अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव की शुरूआत हुई। आज यह महोत्सव दुनिया के 50 से अधिक देशों के प्रतिभागियों को आकर्षित कर है।

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