
राजनाथ सिंह ने रविवार को कर्नाटक के बेंगलुरु में भारतीय वायु सेना के एयरोस्पेस मेडिसिन संस्थान (आईएएम) का दौरा किया। इस संस्थान का दौरा करने वाले वह पहले रक्षा मंत्री हैं। उन्हें पायलट प्रशिक्षण, उनके चिकित्सा संबंधी मूल्यांकन और एयरोमेडिकल अनुसंधान में आईएएम की अनूठी भूमिका के बारे में जानकारी दी गई। रक्षा मंत्री ने लड़ाकू पायलटों के उच्च-जी प्रशिक्षण के लिए उपयोग किए जाने वाले डायनेमिक फ्लाइट सिम्युलेटर और हाई परफॉरमेंस ह्यूमन सेंट्रीफ्यूज और उड़ान में स्थानिक भटकाव के जोखिम को रोकने के लिए सशस्त्र बलों के पायलटों को प्रशिक्षित करने के लिए स्थानिक भटकाव सिम्युलेटर का भी निरीक्षण किया।
उन्होंने संस्थान में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की एक्स्ट्रामुरल रिसर्च परियोजना, सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च का भी शुभारंभ किया। परियोजना का शीर्षक ‘अंतरिक्ष मनोविज्ञान: भारतीय अंतरिक्ष मिशनों के लिए अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष यात्रियों के चयन और व्यवहारिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण’ है।
रक्षा मंत्री ने इस अवसर पर हवाई और अंतरिक्ष यातायात में निरंतर वृद्धि के मद्देनजर एयरोस्पेस मेडिसिन में विशेषज्ञता की बढ़ती आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “ रक्षा के दृष्टिकोण से, अंतरिक्ष युद्ध में एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभरा है। हमने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया है और एंटी-सैटेलाइट जैसी सबसे उन्नत तकनीकों में महारत हासिल की है। भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ता विमानन बाजार भी बन गया है। चूंकि हम अंतरिक्ष में नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं, इसलिए हमें एयरोस्पेस मेडिसिन में और अधिक संभावनाएं तलाशने की जरूरत है। अनुसंधान और विकास में वृद्धि की आवश्यकता है क्योंकि किसी भी उच्च-स्तरीय जटिल तकनीक में अनुसंधान कई क्षेत्रों को लाभ प्रदान करता है। ”
राजनाथ सिंह ने एयरोस्पेस मेडिसिन के महत्व का उल्लेख करते हुए इसे सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण, विकिरण और अंतरिक्ष में मनुष्य द्वारा सामना की जाने वाली अलगाव जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए महत्वपूर्ण बताया, साथ ही शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों को भी संबोधित किया। उन्होंने कहा, “चाहे वह न्यूरॉन्स, हड्डियों के नुकसान या मानसिक समस्याओं से संबंधित कोई मुद्दा हो, इन चुनौतियों से निपटना एयरोस्पेस और अंतरिक्ष चिकित्सा की जिम्मेदारी है। इस क्षेत्र को भविष्य में बड़ी जिम्मेदारियों के लिए खुद को तैयार करना चाहिए।” उन्होंंने एयरोस्पेस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में आईएएम के योगदान की सराहना की।
उन्होंने कहा, “ एयरोस्पेस मेडिसिन के अलावा, आईएएम क्रू मॉड्यूल डिजाइन और विकास के विभिन्न पहलुओं में एयरो-मेडिकल परामर्श प्रदान करता है। कॉकपिट डिजाइन में इसका योगदान उल्लेखनीय है। संस्थान ने एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर, लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर और लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस के डिजाइन और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह देश के सबसे आधुनिक एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के डिजाइन और विकास में भी सलाह दे रहा है।”
रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि आने वाले समय में एयरोस्पेस क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि होने जा रही है और यह सरकार के 2047 तक विकसित भारत के विजन को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा, “ यह क्षेत्र तकनीकी उन्नति, राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। इसके अलावा, यह उपग्रह प्रक्षेपण, अंतर-ग्रहीय मिशन और वाणिज्यिक अंतरिक्ष सेवाओं जैसे मील के पत्थर हासिल करने में केंद्रीय होगा।”
इस यात्रा के दौरान रक्षा मंत्री के साथ प्रशिक्षण कमान के एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ एयर मार्शल नागेश कपूर, चिकित्सा सेवाएं (वायु) के महानिदेशक एयर मार्शल संदीप थरेजा और भारतीय वायुसेना के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।