अस्ताना/नई दिल्ली, भारत और पाकिस्तान दो साल तक चली प्रक्रिया के बाद आज शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के पूर्णकालिक सदस्य बन गये। चीन के प्रभुत्व वाले इस सुरक्षा समूह को नाटो का शक्ति-संतुलन करने वाले संगठन के तौर पर देखा जा रहा है। रूस ने एससीओ में भारत की सदस्यता की पुरजोर वकालत की थी वहीं समूह में पाकिस्तान के प्रवेश का समर्थन चीन ने किया था। विस्तार के बाद अब एससीओ 40 प्रतिशत आबादी और वैश्विक जीडीपी के करीब 20 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करेगा।
एससीओ के सदस्य के रूप में भारत आतंकवाद से निपटने के लिए समन्वित कार्रवाई पर जोर देने में और क्षेत्र में सुरक्षा तथा रक्षा से जुड़े विषयों पर व्यापक रूप से अपनी बात रख सकता है। फिलहाल एससीओ की अध्यक्षता कर रहे कजाकिस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव ने यहां संगठन के शिखर-सम्मेलन में घोषणा करते हुए कहा, ‘भारत और पाकिस्तान अब एससीओ के सदस्य हैं।
यह हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण क्षण है।’ दुनिया में सर्वाधिक ऊर्जा खपत वाले देशों में शामिल भारत को मध्य एशिया में प्रमुख गैस और तेल अन्वेषण परियोजनाओं में व्यापक पहुंच मिल सकती है। एससीओ के अधिकतर देशों में तेल और प्राकृकि गैस का प्रचुर भंडार है। एससीओ ने जुलाई 2015 में रूस के उफा में हुए सम्मेलन में भारत को समूह का सदस्य बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी।
उस समय भारत और पाकिस्तान को सदस्यता प्रदान करने के लिए प्रशासनिक अवरोधों को दूर किया गया था। रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने 2001 में शंघाई में एक शिखर-सम्मेलन में एससीओ की नींव रखी थी।
भारत, ईरान और पाकिस्तान को 2005 में अस्ताना में हुए सम्मेलन में पर्यवेक्षकों के रूप में शामिल किया गया था। जून 2010 में ताशकंत में हुए एससीओ के सम्मेलन में नयी सदस्यता पर लगी रोक हटाई गयी थी और समूह के विस्तार का रास्ता साफ हो गया। भारत का मानना है कि एससीओ के सदस्य के रूप में वह क्षेत्र में आतंकवाद के खतरे से निपटने में बड़ी भूमिका निभा सकेगा।