अंग्रेजी में कॉमन फिग, हिन्दी, बांग्ला, मराठी और गुजराती में अंजीर, तमिल में तेनत्ति तथा मलयालम में सिभयत्ति नाम से जाना जाने वाला अंजीर मोरासी परिवार से संबंधित है। इसका वृक्ष मध्यम आकार को होता है जो नीचे से ही शाखाएं छोड़ने वाला होता है। इसकी शाखाएं लंबी गोल तथा लचीली होती हैं। पत्ते चौड़े तथा हृदयाकार होते हैं। कच्चे फल में दूध पकने पर रस बन जाता है। फूल फल के अंदरूनी भाग में होते हैं जो बाहर से नहीं दिखते।
पकने पर अंजीर पीली−हरी तथा लाल आभा लिए होता है। फल सुंगधित तथा गूदेदार भी होता है। अंजीर पहाड़ों पर खूब पैदा होता है।
उष्ण प्रदेशों में भी यह कहीं−कहीं पाया जाता है। इसमें वर्ष में दो बार फल आते है-जून−जुलाई तथा इसके बाद जनवरी मास में। अंजीर के पके हुए फल को शीतल, मधुर, तृष्तिदायक, क्षय, वात, पित्त एवं कफ को नष्ट करने वाला माना जाता है। यह आमवात नाशक, कुष्ठ, खुजली तथा अन्य त्वचीय रोगों को दूर करने वाला, जलन को शांत करने वाला, व्रणनाशक स्तंभक, सोजहर तथा रक्तस्राव को रोकने वाला होता है। इसकी छाल कसैली, ठंडी, व्रणनाशक तथा दस्तनिवारक होती है।
विटामिन ए तथा सी व कैल्शियम भी इसमें पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार थोड़ी मात्रा में खाए जाने पर अंजीर पाचक, रूचिकर और हृदय के लिए हितकर होता है परन्तु ज्यादा खा लेने पर दर्द के साथ अतिसार और अफरा हो सकता है। पाचन संस्थान की निर्बलता दूर करने के लिए अंजीर का प्रयोग किया जाता है परन्तु ऐसे में अंजीर का पूरा फल देने की बजाए उसका काढ़ा बनाकर देना चाहिए। पेचिश वाले दस्तों के लिए अंजीर का काढ़ा बहुत उपयोगी होता है परन्तु काढ़ा बनाने के लिए उबालने से पहले इन्हें कुछ घंटे तक पानी में डालकर नरम कर लेना चाहिए और फिर तब तक पकाना चाहिए जब कि कि वे घुल ना जाएं।
प्रतिदिन दूध के साथ अंजीर का सेवन करने से कब्ज दूर होती है। जिन लोगों को सदैव मलबंध की शिकायत होती है उन्हें अंजीर को अपने दैनिक आहार में शामिल कर लेना चाहिए। इनका प्रयोग नाश्ते में किया जा सकता है। अंजीर का दूध एक अच्छा आंत्रकृमि नाशक होता है। बवासीर के निदान के लिए पांच सूखे अंजीर को पानी में भिगोकर रात को रख दें। सुबह अंजीरों को उसी पानी में मसलकर पी लें। इसी प्रकार सुबह अंजीर भिगोकर रात को उनका पानी पीया जा सकता है। स्वाद के लिए इसमें शहद भी मिलया जा सकता है। जिन लोगों को होठ, मुख फटने की शिकायत होती है उनके लिए ताजा या सूखा अंजीर बलदायक सिद्ध होता है। मुख के जख्मों में अंजीर का दूध लगाया जाता है। नियमित रूप से अंजीर पाक का सेवन रक्त की शुद्धि करता है।
बादाम तथा पिस्ता के साथ अंजीर का नियमित सेवन करने से मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है, बुद्धि कुशाग्र तथा याद्दाश्त तेज होती है। रक्त−पित्तजनित रक्तस्राव में अंजीर का रस शहद मिलाकर प्रयोग से लाभ होता है। नकसीर में अंजीर लाभदायक माना जाता है। बच्चों का जिगर बढ़ने की शिकायद दूर करने के लिए अंजीर बहुत फायदेमंद है। सिरके में डाले गए अंजीर का नियमित सेवन करेन से तिल्ली नहीं बढ़ती। सूखे अंजीर को पानी को भिगोकर सुबह उन्हें मसलकर शहद के साथ एक माह नियमित रूप से सेवन करने से मूत्र में जलन तथा मूत्रावरोध जैसी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
अंजीर के रस में शहद मिलाकर पीने तथा बाद में दूध में खांड मिलाकर पीने से रक्त प्रदर का निदान हो जाता है। खांसी में अंजीर का शरबत बहुत फायदेमंद होता है। यह बलगम को पतला कर बाहर निकलता है तथा पुरानी से पुरानी खांसी में भी फायदेमंद होता है। सूखे या हरे अंजीर को पीसकर उसके लेप को हल्का गर्म करके शोथवाली गांठों पर लगाने से सूजन मिट जाती है। श्वेत कुष्ठ में इसकी जड़ को घिसकर त्वचा पर लेप किया जाता है। अंजीर के पत्तों को मोटा−मोटा कूटकर रात को पानी में भिगो दें, सुबह इसे मसलकर, छानकर पीने से प्यास और उल्टियां शांत होती हैं। गर्मियों में प्रतिदिन अंजीर का शर्बत खाली पेट पीना चाहिए इससे गर्मी और प्यास नहीं सताती।