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कविता एक नेता दो, वह भी धुर विरोधी, तो अफवाहों को क्यों न मिले बल ?

लखनऊ, एक ही कविता अगर दो धुर विरोधी नेता अपनी- अपनी फेसबुक वाल से पोस्ट करें और फिर कहें कि हमारे बारे मे अफवाहें फैल रहीं हैं तो सिर्फ हंसी आती है कि सब समझ रहें है अफवाहें कौन फैला रहा है ?

कविता का शीर्षक है *रावण बनना भी कहां आसान…*.  इस कविता मे, रावण की बुराईयों के साथ-साथ उसके गुणों की भी चर्चा की गई है और अंत मे शायद इसीलिये कहा भी गया है-  राम, तुम्हारे युग का रावण अच्छा था..

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने यह कविता अपनी फेसबुक वाल पर यह लिखते हुये पोस्ट की कि-विजयदशमी के अवसर पर यह कविता शेयर कर रहा हूँ। पता नहीं कवि कौन है, लेकिन मुझे आज के सन्दर्भ में इतनी सही लगी। ध्यान से पढियेगा।

उसी के दो घंटे बाद, आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अपनी फेसबुक वाल पर वही कविता पोस्ट कर दी जो स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव अपनी फेसबुक वाल से दो घंटे पूर्व पोस्ट कर चुके थे.

 इधर, यह अफवाह बड़ी जोरों पर है कि अरविंद केजरीवाल को अपनी गलतियों का अहसास हुआ है और अब उनको लग रहा है कि पार्टी के बड़े और लोकप्रिय चेहरों को अलग करने का नुकसान हुआ है और उसकी भरपाई के लिये पुराने नेताओं को पार्टी में वापस लिया जाए। दूसरी ओर आप से हटाए गए नेता भी पिछले दो साल में अपना अलग मोर्चा और पार्टी बना कर देख चुके हैं कि उन्हें सफलता नहीं मिलने वाली है। सो, वे भी इंतजार कर रहे हैं कि अगर प्रस्ताव मिले तो फिर एकजुट हुआ जाए।

इसकी शुरुआत पांच अक्टूबर को सकती है। कर्नाटक में मारी गई पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में पांच अक्टूबर को एक बड़ा प्रदर्शन होगा, जिसमें आम आदमी पार्टी और स्वराज अभियान दोनों शामिल होंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि अरविंद केजरीवाल और योगेंद्र यादव एक साथ आते हैं तो दोनों की क्या प्रतिक्रिया होती है।

जबकि इस अफवाह का स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने खंडन भी किया है। लेकिन इसके बाद  भी अगर ये दोनों नेता कविता- कविता खेलेंगे, तो इसे क्या समझा जाये ? 

*रावण बनना भी कहां आसान…*

रावण में अहंकार था
तो पश्चाताप भी था

रावण में वासना थी
तो संयम भी था

रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी
तो बिना सहमति परस्त्री को स्पर्श भी न करने का संकल्प भी था

सीता जीवित मिली ये राम की ही ताकत थी
पर पवित्र मिली ये रावण की भी मर्यादा थी

राम, तुम्हारे युग का रावण अच्छा था..
दस के दस चेहरे, सब “बाहर” रखता था…!!

महसूस किया है कभी
उस जलते हुए रावण का दुःख
जो सामने खड़ी भीड़ से
बारबार पूछ रहा था…..
*”तुम में से कोई राम है क्या “*