कश्मीरी पंडितों के लिए मुखर हुए अनुपम खेर, कविता के जरिए उठाई आवाज

Anupam-Kherनई दिल्ली,  पिछले 27 सालों से अपने देश में ही रिफ्यूजी के तौर पर रह रहे कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने के लिए अभिनेता और सामाजिक कार्यकर्ता अनुपम खेर ने गुरुवार को कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा का वर्णन करते हुए हृदयविदारक कविता शेयर किया है।

ये कश्मीरी पंडित 1990 से शरणार्थियों के तौर पर जिंदगी जीने को मजबूर हैं। इस बीच गुरुवार को जम्मू कश्मीर असेंबली ने कश्मीरी पंडितों की वापसी का प्रस्ताव पारित कर दिया है। जम्मू क मीर के शिक्षा मंत्री नईम अख्तर ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, आज पंडितों को कश्मीर की इतनी जरूरत है, जितनी कश्मीर को पंडितों की। हमें कश्मीर बहुसांस्कृतिक, बहु जातीय और महानगरीय चरित्र के पुनर्निर्माण की जरूरत है। कश्मीरी पंडित समुदाय के दर्द और उनकी चुप्पी के पीछे छिपी चीख को बयां करते हुए अनुपम खेर ने अपनी कविता में उस एक दिन की चेतावनी दी है कि जब यह चुप्पी तेज आवाज में बदल जाएगी। 61 वर्षीय अभिनेता अनुपम खेर कश्मीरी पंडित समुदाय से संबंध रखते हैं।

उन्होंने ट्वीट किया, 27 साल होने से हम कश्मीरी पंडित अपने देश में शरणार्थी की तरह रह रहे हैं। यह कविता उनकी चुप्पी के पीछे छिपे उस दर्द का आवाज है। इसे शेयर करें। 20 जनवरी को इस बात के 27 साल हो गए जब घाटी से 60,000 कश्मीरी पंडित के परिवारों को जबर्दस्ती विस्थापित किया गया था। उन्होंने देश को दिए अपने इस भावुक संदेश में बताया है कि कश्मीरी पंडितों के माइग्रेशन को मनाया नहीं जाता लेकिन इसे याद किया जाता है। उन्होंने आगे बताया है की 27 जनवरी,1990 की उस रात को कोई भूल नहीं सकता, जब उन कश्मीरी पंडितों पर यह गाज गिरी थी। लाखों लोग सड़क पर आ गए थे। मस्जिदों से घोषणाएं की जा रही थीं- कश्मीरी पंडितों अपना घर छोड़ दो, महिलाओं को छोड़ दो और चले जाओ। वह रात कोई नहीं भूल सकता। जो कश्मीरी पंडितों के इस दर्द को समझना और सुनना नहीं चाहते उनके कानों तक इस आवाज को पहुंचाने का यह प्रयास है। न्याय की चाह वाली अपनी उम्मीद बताते हुए अनुपम ने आगे कहा कि वे हिंसा के जरिए न्याय नहीं चाहते बल्कि विभिन्न माध्यमों जैसे मीडिया और सोशल मीडिया से इस आवाज को बुलंद कर न्याय चाहते हैं।

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