लखनऊ, उत्तर प्रदेश में बिजली संकट के बीच कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार एनर्जी एक्सचेंज से महंगी बिजली ख़रीदने के नाम पर मुनाफ़ाख़ोरी को हवा दे रही है।
पार्टी ने उपभोक्ता परिषद की ओर से उठाये गये बिंदुओं का समर्थन करते हुए कहा है कि सरकार ने बिजली संकट के बीच छह रुपये लागत वाली बिजली को 16 से बीस रुपये युनिट की दर से ख़रीदा है, सिर्फ तीन दिन में बिजली कंपनियों ने 240 करोड़ रुपये की आय की है, जिसमें यूपी के ख़ज़ाने का 80 करोड़ रुपया शामिल है। यह सारा बोझ अंतत: टैक्स की शक्ल में जनता से ही वसूला जाएगा।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने स्पष्ट किया है कि बिजली ट्रेडिंग पर चार पैसे प्रति युनिट अधिकतम मुनाफा लिया जा सकता है। ऐसे में छह रुपये से भी कम लागत वाली बिजली को 20 रुपये तक प्रति यूनिट की ख़रीद-फ़रोख्त बिना सरकार की मदद से संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि कोयले का संकट भी एक दिन में पैदा नहीं हो सकता है। ऐसा लगता है कि सरकार ने कृत्रिम तरीके से कोयले का संकट पैदा होने दिया ताकि उसके पूँजी पति मित्र मुनाफ़ा कमा सकें।
श्री सिंह ने कहा कि 2017 के चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश की जनता से यह कहकर वोट मांगा था कि अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनेगी तो वह सरकार डबल इंजन की होगी। प्रदेश का विकास बहुत तेजी से होगा। लेकिन भाजपा सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेशवासी देश में सबसे महंगी बिजली खरीदने को मजबूर हैं। तब भी लोगों को 24 घंटे बिजली नहीं मिल पा रही है जैसा कि बीजेपी ने वादा किया था। भीषण महंगाई के दौर में बिजली के दाम का जैसा करंट जनता को लग रहा है, अगले विधानसभा चुनाव में वैसा ही करंट बीजेपी सरकार को भी लगेगा।
प्रदेश प्रवक्ता ने बताया कि 1989 में कांग्रेस सरकार जाने के बाद सपा, बसपा और भाजपा ने बिजली क्षेत्र के निजीकरण पर जोर दिया और सरकारी तापीय बिजलीघरों को निजी हाथों में बेच दिया। अब उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार प्रदेशवासियों को निजी कंपनियों से खरीद कर महंगी बिजली उपलब्ध करा रही है। सरकार ने जनकल्याण को व्यापार में बदल दिया है। कांग्रेस और उत्तर प्रदेश की जनता इस खेल को बखूबी समझ रही है जिसका जवाब भाजपा सरकार को 2022 में मिल जाएगा ।