नई दिल्ली, पांच राज्यों के चुनावी नतीजों से एक बात पूरी तरह से स्पष्ट हो गई है कि भाजपा वहां जीत रही है, जहां उसका मुकाबला सीधे कांग्रेस से है। लेकिन भाजपा का प्रदर्शन वहां खराब रहा , जहां किसी क्षेत्रीय या गैर-कांग्रेस पार्टी से उसकी टक्कर हुई है। पांचों राज्यों के चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो तमिलनाडु में जयललिता की अन्नाद्रमुक, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और केरल में वाममोर्चा एलडीएफ इसके उदाहरण हैं। इससे भी पहले दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ मिली हार भी इसी संकेत को स्पष्ट कर रही है।
सितंबर, 2014 मे भाजपा ने विधानसभा चुनावों में हरियाणा, मध्य प्रदेश, झारखंड और महाराष्ट्र को फतह किया था। इन चारों राज्यों मे ज्यादातर उसकी सीधी टक्कर कांग्रेस से रही और कमोबेस यही हालात असम मे भी रहे।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था, लेकिन वह ओडिशा में बीजेडी, तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक और तेलंगाना में टीआरएस को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकी थी। सितंबर, 2014 में उन्होंने महाराष्ट्र जीत लिया, लेकिन उत्तर प्रदेश में हुए लगभग सभी उपचुनाव हार गए। जम्मू एवं कश्मीर में भी भाजपा सत्ता में तभी पहुंच सकी, जब उन्होंने पीडीपी के साथ गठबंधन किया।
कांग्रेस और संप्रग में सहयोगी उनकी पार्टियों के कब्जे में कुल सात राज्य हैं, जिनमें देश की कुल आबादी का सिर्फ 15.5 फीसदी हिस्सा बसा हुआ है, जबकि भाजपा और उनके सहयोगियों के कब्जे में 13 राज्य हैं, जिनमें देश की 43 फीसदी आबादी रहती है। इसलिये भाजपा को अब कांग्रेस से ज्यादा क्षेत्रीय पार्टियों के खिलाफ जीत हासिल करने का फॉर्मूला ढूंढना होगा, जिनके कब्जे में इस वक्त 11 राज्य और 41 फीसदी आबादी है।
इससे यह लगता है कि भले ही कांग्रेस गिरावट की ओर बढ़ रही है, लेकिन अन्नाद्रमुक तथा तृणमूल कांग्रेस की जीत साबित करती है कि भाजपा को हराया जा सकता है। ऐसी पार्टियां भाजपा के लिये आंख की किरकिरी बनकर सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाती रहेंगी। बिहार के महागठबंधन और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की जीत ने भाजपा के तिलिस्म को समाप्त करने का काम किया है।