मुंबई, जल के क्षेत्र में काम करनेवाले विशेषज्ञों का कहना है कि इसके असामान्य वितरण, योजनाओं की कमी, राजनीतिक हस्तक्षेप और जल के बढ़ती मांग की वजह से महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में विवाद बढ़ रहा है। महाराष्ट्र में इस साल मानसून में अपर्याप्त बारिश हुई। सरकार ने महाराष्ट्र के 353 तालुका में से 151 को सूखाग्रस्त घोषित किया है।
मराठवाड़ा बैकलॉग रिमुवल एंड डेवलपमेंट फोरम के अध्यक्ष संजय लाखे पाटिल ने राज्य स्तर पर जल वितरण एवं भंडारण के लिए राज्य स्तर पर नीति की कमी की तरफ इशारा किया। उन्होंने कहा, ‘‘वह हमेशा अपने क्षेत्रों में ज्यादा निवेश करते हैं। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में अधिकतम बांध का निर्माण हो रहा है। इसके परिणामस्वरूप जल का वितरण असमान्य हो जाता है और विभिन्न क्षेत्रों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है।’
पाटिल ने दावा किया, ‘‘ हमारी जल नीति में अब भी खामी है। सिंचाई परियोजनाओं के आवंटन से पहले क्षेत्र की जरूरत पर कभी विचार नहीं किया जाता है। नेता सिर्फ अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों के बारे में सोचते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कृष्णा घाटी सिंचाई परियोजना में हुए भारी व्यय से पश्चिमी महाराष्ट्र में जल का असामान्य वितरण हुआ।