गुजरात, दलितों की नाराज़गी और उससे पनपे सामाजिक असंतोष का असर देखना है तो गुजरात आइये। गुजरात अब बदबू करने लगा है। जगह-जगह जानवर मरे पड़े पड़े हैं, जिनसे बीमारियां फैलने का खतरा है। सड़क पर ही कई दिनों से मरी हुई गायें और जानवर दिख जायेंगे। रास्तों पर सड़ते हुए जानवरों की गंध महसूस होती है।
पिछले महीने ऊना में कुछ गौरक्षकों के द्वारा मरी गायों की खाल उतारने वाले दलितों की पिटाई के बाद से भड़के दलित आंदोलन के कारण अब मरी गायों को हटाने वाला कोई नहीं है। इन मरे जानवरों को पहले आसपास की दलित बस्तियों के लोग हटाया करते और खाल उतार कर उसे दफना दिया करते थे, लेकिन अब गुजरात में दलित आंदोलन पर हैं।
मरे जानवरों की खाल उतारने का काम दलित समुदाय की रोजी-रोटी है, लेकिन अब वह आत्मसम्मान और सामाजिक न्याय की लड़ाई का रूप ले चुका है। समस्या यह है कि सबसे ज्यादा गाय पालने का काम गैर- दलित करतें हैं पर गैर-दलित खाल उतारने और दफनाने का काम नहीं जानते हैं । ऐसे हालात में , अब गैर- दलित ट्रैक्टर ट्रॉली में इन मरी गायों को कुछ दूर फेंककर आ जाते हैं।
दलित आंदोलनकारियों का एक दल अहमदाबाद से मार्च करते हुए ऊना के रास्ते में है। दलितों के आंदोलन की अगुवाई कर रहे लोगों ने समुदाय से अपील की है कि वो जानवरों को न दफनाएं। दलितों का मार्च आज 15 अगस्त को ऊना पहुंच रहा है।