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घड़ों को मिलेगा बाजार का विस्तार, मंडल आयुक्त ने की पहल

झांसी, उत्तर प्रदेश में ‘देसी फ्रिज’ के नाम से विख्यात बुंदेलखंड के कोछाभांवर गांव के घड़ाें को बाजार के विस्तार से जोड़ कर इन्हें विश्व फलक पर नयी पहचाने देने के लिये झांसी के मंडल आयुक्त डा अजय शंकर पाण्डेय ने अनूठी पहल की है।

बुंदेलखंड की स्थानीय कला, संस्कृति और हुनर को बढ़ावा देने के लिये आयुक्त द्वारा चलाये गये अभियान में शुक्रवार को यहां के कोछाभांवर गांव के मटके (घड़े) भी शामिल हो गये। गौरतलब है कि कुंभकारों द्वारा हाथ से ही खास तरीके से बनाये जाने के कारण कोछाभांवर के मटके न सिर्फ“देसी फ्रिज’ बल्कि ‘देसी फिल्टर’ के नाम से भी विख्यात हैं।

गांव के एक प्राचीन तालाब की काली आैर लाल मिट्टी के अनूठे मिश्रण से घड़े बनाने की सदियों पुरानी कला को आजीविका का सशक्त माध्यम बनाने के लिये डा पांण्डेय ने गुरुवार को इस गांव का दौरा कर उन कुंभकारों से बातचीत की जो संकट से जूझती इस तकनीक के हुनर को किसी तरह जिंदा रखे हुए हैं।

उन्होंने बताया कि भीषण गर्मी में शीतल जल से प्यास बुझाने वाले कोछाभांवर के विख्यात मटकों को बाजार की उपयुक्त पहुंच में लाने और इन्हें बनाने वाले कुंभकारों को उनकी मेहनत एवं हुनर का वाजिब दाम दिलाने के लिये बाजार संगठनों को जाड़ा गया है। डा पाण्डेय ने बताया कि मौजूदा दौर में इस गांव के बाहर ही कुंभकार अपने बनाये हुए घड़ों को राष्ट्रीय राजमार्ग पर अस्थायी दुकानों से राहगीरों को मामूली दाम पर बेचते हैं। कुंभकारों के इस हुनर और इनके उत्पाद को प्रोत्साहन देने के लिये मंडल के सभी सरकारी कार्यालयों में कोछाभांवर के मटके ही रखने की अनिवार्यता को लागू कर दिया गया है।

उन्होंने बताया कि क्षेत्र के व्यापार मंडलाें से भी कहा गया है कि वे अपनी दुकानों में इस गांव के घड़ों को रखें। डा पाण्डेय ने बताया कि कुंभकारों ने उन्हें अवगत कराया है कि गांव के जिस तालाब से मटके बनाने के लिये वे विशिष्ट मिट्टी एकत्र करते हैं, वह तालाब अब सूखने की कगार पर है। कुंभकारों ने बताया कि ऐसी मिट्टी आसपास कहीं और नहीं मिलती है, इसलिये प्रशासन को बुंदेलखंड में इस तालाब की मिट्टी का परीक्षण कर ऐसी ही मिट्टी के स्रोत का पता लगाने काे कहा गया है।

कुंभकारों ने डा पाण्डेय को बताया कि झांसी मेडिकल कॉलेज के तालाब की मिट्टी इसका विकल्प हो सकती है। इस पर मंडल आयुक्त ने मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को उक्त तालाब की मिट्टी कुंभकारों को मटके बनाने के लिये मुुहैया कराने का निर्देश दे दिया है। साथ ही आसपास के इलाकों में ऐसी ही मिट्टी की खोज करने के लिये कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक एस एस चौहान को निर्देश दिये गये हैं।

इसके अलावा मंडल आयुक्त ने जिला खादी ग्रामोद्योग अधिकारी को इन घड़ों को बना कर बेचने वाले गांव केे 74 परिवारों को गर्मी के बाद उनकी कुम्हारी कला के हुनर का अन्य वस्तुयें बनवाकर इनकी आलीविका को व्यापक बनाने में मदद करने के लिये कहा गया है। इसके लिये जिला खादी ग्रामोद्योग अधिकारी को बाकायदा परियोजना रिपोर्ट तैयार कर बारिश के पहले पेश करने काे कहा गया है जिससे इस साल गर्मी खत्म होने तक इन कुंभकारों को साल से शेष समय में इनके हुनर के मुताबिक आजीविका के साधन मुहैया कराये जा सकें।

मंडल आयुक्त डा पाण्डेय की इस पहल से खुश कुंभकारों का मानना है कि उनके बनाये मटकों के बारे में प्रचलित कहावत “कोछाभांवर के मटके, कभी चटके, ले जाओ बेखटके और पानी पियो खूब डटके” अब सही मायने में चरितार्थ होगी। शनि कुम्हार ने बताया कि मंडल आयुक्त ने उनसे एक मटका खरीद कर उससे पानी पिया और बताया कि वह हमेशा घड़े का ही पानी पीते हैं। साथ ही उन्होंने घड़े का पानी पीने से सेहत को होने वाले फायदों को भी कुंभकारों के साथ साझा किया।