भारत में वृद्धावस्था में लोगों को अपने घुटनों के दर्द से जूझते और खुद का जीवन बिस्तर तक सीमित रखते आसानी से देखा जा सकता है। ज्यादातर लोग इसे स्वाभाविक मान कर चलते हैं और मानते हैं कि वृद्धावस्था में यह सामान्य बात है और इस उम्र में आपरेशन कराना जोखिम भरा हो सकता है। हालांकि शारीरिक गतिविधियों को सीमित करने से न सिर्फ परिवार के सदस्यों पर आपकी निर्भरता बढ़ती है, बल्कि मधुमेह और मोटापे जैसी समस्याएं भी परेशान करने लगती हैं।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के सीनियर ऑर्थोपेडिक सर्जन डा. एल.तोमर कहते हैं कि हमारे समाज में लोग अपने जीवन का उत्पादक समय यानि रिटायरमेंट या 60-65 की उम्र निकलने के बाद बिस्तर पकड़ लेना सामान्य बात मानते हैं। लोग मानते हैं कि अब उम्र हो गई है और इस उम्र में आपरेशन कराने का कोई फायदा नहीं है लेकिन लोग सर्जरी की आधुनिक तकनीकों जैसे मिनिमम इन्वेसिव तकनीक आदि के बारे में नहीं जानते। इसके जरिए सर्जरी न सिर्फ बहुत साधारण और अच्छे ढंग से होती है, बल्कि पुराने तरीके के मुकाबले घुटने ज्यादा बेहतर ढंग से काम करते हैं।
इसके जरिए अस्सी वर्ष से ज्यादा के लोग भी आसानी से घुटना प्रत्यारोपण करवा सकते हैं और इसके बाद बिल्कुल सामान्य ढंग से चल-फिर सकते हैं। मिनिमल इन्वेसिव घुटना प्रत्यारोपण में हड्डियों को काटने या उनमें छेद करने की जरूरत नहीं पड़ती। आधुनिक नेवीगेशन सिस्टम से सर्जन को लगातार सिग्नल मिलते रहते है, मशीनों पर रीयल टाइम इमेज प्राप्त होती रहती है और इससे मरीज की एनोटमी के बारे में डाक्टर को पूरी सूचना मिलती रहती है। यही कारण है कि कृत्रिम घुटना लगाने में ज्यादा सर्जरी नहीं करनी पड़ती और उसका बिल्कुल सही प्लेसमेंट होता है।
नी रिप्लेसमेंट सर्जरी के क्षेत्र में प्री प्लान क्रांतिकारी तकनीक है, जो रिस्क कम करती है और बेहतर क्लीनिक परिणाम प्रदान करती हैै। डा. तोमर कहते हैं कि इस तकनीक में एडवांस सीटी स्कैन की मदद से सर्जरी से पहले रोगी के सही अलाइंमेंट का निर्णय लिया जाता है और इस आधार पर रोगी की स्थिति व बनावट के अनुसार जिग बनाया जाता है। इसका डिजाइन हड्डी को सही कट देता है और प्रत्यारोपण सर्जरी में समय कम लगता है व खून का नुकसान कम होता है।