इटावा, उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की चंबल घाटी में नदियों के किनारे बसे करीब ढाई हजार किसान प्राकृतिक खेती करेंगे,इससे नदियों की सूरत और सीरत बदलेगी।
कृषि विभाग के उपनिदेशक आर.एन.सिंह ने मंगलवार को यूनीवार्ता को यह जानकारी देते हुए बताया कि कृषि विभाग की ओर से मार्च माह के अंत में इस प्रक्रिया को शुरू किया जाएगा। कृषि विभाग की ओर से इस योजना में इटावा जिले के बढ़पुरा व चकरनगर ब्लॉक की 20 गांवों के एक हजार हेक्टेयर जमीन पर प्राकृतिक खेती करवाई जाएगी, जिसे विभाग में बांटा गया है।
प्रत्येक क्लस्टर में 125 किसानों के हिसाब से 2500 किसानों को जोड़े जाने की प्रक्रिया शुरू की गई है। किसानों के प्रशिक्षण सहित योजना के क्रियान्वयन के लिए एक क्लस्टर में दो कृषि सखी की तैनाती की जाएगी। इसके लिए उन्हें निर्धारित मानदेय देने की योजना है। कुल 40 कृषि सखियों की तैनाती होगी।
किसानों को दो वर्ष के लिए आठ हजार प्रति किसान के रुपये अनुदान दिया जाएगा। पूरी योजना के लिए 2.86 करोड़ की धनराशि खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।
श्री सिंह ने बताया कि गंगा की धारा अविरल करने के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत अब सहायक नदियों के किनारे प्राकृतिक खेती कराई जाएगी। इटावा जिले में गंगा की सहायक नदी यमुना के किनारों पर किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा जाएगा। इसका जिम्मा कृषि विभाग को सौंपा गया है। योजना का मकसद है कि यमुना किनारे के खेतों में रसायन का कम प्रयोग हो, ताकि यमुना को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ) के तहत इटावा जिले के 2500 से अधिक किसान प्राकृतिक खेती करेंगे। इसके लिए यमुना नदी के किनारे के 20 गांवों का चयन किया जाएगा। इन किसानों को सरकार की ओर से प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा, साथ ही किसानों को अनुदान देने की भी योजना है।
कृषि विज्ञान केंद्र प्रभारी डॉ. एम.के.सिंह ने बताया कि आसपास के खेतों में रासायनिक उर्वरकों से खेती की जाती है। बारिश में खेतों का पानी नदी में पहुंचता है, इससे रासायनिक पदार्थ भी नदी के पानी में जाकर घुल जाते है। यमुना में भी ये बड़ा रेता है। इसीलिए यमुना के किनारों के गांवों में प्राकृतिक खेती पर जोर दिया जा रहा है।
श्री सिंह ने बताया कि बीते दिनों विभाग की मृदा परीक्षण रिपोर्ट में इटावा जिले के कई स्थानों की मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट पाई गई। खेतों में केमिकल खादों के उपयोग से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम हो जा रही है। इन खादों में मिले केमिकल ने मिट्टी की जैविक और कार्बनिक क्षमता को कमजोर कर सो है। यहां तक कि मिट्टी में अब केंचुए भी नहीं दिखते, जिन्हें किसान का मित्र कहा जाता है। इसे देखते हुर सरकार ने नेचुरल फार्मिंग से मिट्टी को सुधारने का बड़ा प्रयास शुरु किए जा रहे है।