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चंबल सेंचुरी में बनेगी डॉल्फिन सफारी

इटावा, कभी कुख्यात डाकुओं के आतंक के साए में रही चंबल घाटी में डॉल्फिन सफारी का निर्माण किया जाएगा। यह डॉल्फिन सफारी राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के अधीन उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सहसों इलाके स्थित चंबल नदी में निर्मित की जाएगी।

राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी की उप वन संरक्षक (वन्यजीव) आरुषि मिश्रा ने आज यहां बताया कि राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन के संरक्षण के लिए डॉल्फिन अभयारण्‍य का एक प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। इटावा स्थित राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के सहसों क्षेत्र को डॉल्फिन सेंचुरी के लिए चुना गया है। इसमें इटावा के सहसों का 20 किलोमीटर का दायरा चिह्नित किया है। इस स्थान पर 50 से 80 के करीब डॉल्फिन हैं। सैलानी यहां बैठकर डॉल्फिन को देख सकेंगे। ताजा गणना में राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के बाह और इटावा रेंज में 171 डॉल्फिन रिकॉर्ड की गई हैं जबकि साल 2012 के सर्वे में उनकी संख्‍या महज 78 थी।

श्री मिश्रा ने बताया कि साल 1979 में घोषित राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य 635 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है। इसका विस्‍तार मध्य प्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश तक है। इसमें साल 2008 से घड़ियालों की प्राकृतिक हैचिंग हो रही है। परिणाम स्वरूप उनकी संख्‍या भी 2,176 पर पहुंच गई है।

उप वन संरक्षक ने बताया कि डॉल्फिन सफारी के लिए केंद्र सरकार ने दो स्थानों को प्रमुखता दी है। वाराणसी और चंबल का प्रजेंटेशन केंद्र सरकार के सामने हो चुका है। चंबल की वास्तविक स्थिति देख सभी खुश थे। यह इको टूरिज्म और डॉल्फिन संरक्षण की दिशा में भी सरकार का बड़ा कदम है। राज्य सरकार डॉल्फिन अभयारण्‍य के रूप में घोषित कर पर्यटकों को आकर्षित करने की भूमिका बना रही है।

इस सिलसिले में राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी प्रोजेक्ट की उप वन संरक्षक (वन्यजीव) आरुषि मिश्रा ने एक प्रस्ताव शासन को भेजा है। प्रस्ताव में इस बात का जिक्र किया गया है कि डॉल्फिन अभयारण्‍य के लिए इटावा स्थित राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के सहसों क्षेत्र का चयन किया है जहां बड़ी संख्या में डॉल्फिन पाई जाती हैं। अगर आगरा से ताजमहल देखने आने वाले पर्यटक और वन्यजीव प्रेमी चंबल सेंचुरी आते है तो डॉल्फिन सफारी का भी आनंद ले सकेंगे। राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के प्रस्ताव को अगर वाकई में स्वीकार कर लिया गया तो चंबल सेंचुरी के लिए डॉल्फिन पर्यटन के लिहाज से यह बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी।

इटावा के चंबल सेंचुरी के सहसों के 20 किलोमीटर दायरे में बड़ी संख्या में डॉल्फिन पाई जाती है, चंबल सेंचुरी के अफसर के अनुसार इस इलाके में डॉल्फिनों की संख्या में खासी तादात में इजाफा भी हो रहा है।

गौरतलब है कि गंगा नदी में पायी जाने वाली डॉल्फिन भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव है। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 5 अक्टूबर 2009 को डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। इसके बाद से राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत हर वर्ष 5 अक्टूबर को गंगा डॉल्फिन दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रदेश की नदियों में डॉल्फिन की 2012 में हुई गणना डॉल्फिन की संख्या 671 थी, जिसमें से 78 चंबल में थीं। इस समय राष्ट्रीय चंबल सेंचुअरी क्षेत्र के बाह रेंज में 24 और इटावा रेंज में 147 डॉल्फिन हैं।

पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ़ नेचर के महासचिव डा.राजीव चौहान ने कहा कि सैकड़ों दुर्लभ जलचरो का संरक्षण कर रही चंबल नदी हालांकि तीन राज्यो राजस्थान,मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश मे प्रवाहित हो रही है लेकिन यूपी के हिस्से मे डॉल्फिनों की मौजूदगी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। उत्तर प्रदेश मे चंबल नदी का प्रवाह रेहा बरेंडा से शुरू होता है लेकिन इटावा जिले मे इसकी शुरूआत पुरामुरैंग गांव से होते हुए प्रवाह पंचनदा तक रहता है । पंचनदा से पूर्व चंबल नदी यमुना नदी में विलय हो जाती है जिसके बाद यमुना नदी कहलाती है ।

जिले मे गढायता ,बरौली, खेडा अजब सिंह, ज्ञानपुरा, कसौआ, बरेछा, कुंदौल,पर्थरा महुआसूडा और चिकनी टॉवर पर डॉल्फिनों की मौजूदगी होती है जहां पर उनको देखने के लिए बडी तादाद मे स्थानीय और दूर दराज से पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है।
डा. चौहान ने बताया कि इटावा जिले मे डॉल्फिन के संरक्षण के लिए इटावा जिले के डिभौली,कसौआ,सहसो,पचनदा और इटावा मे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है ।

डॉल्फिन की वास्तविक स्थिति का आकंलन करने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने वन विभाग और डब्लूडब्लूएफ के सहयोग से करने का काम शुरू करने की कवायद कर रखी है । चंबल नदी मे 2008 मे डॉल्फिन के मरने का मामला उस समय सामने आया था जब बडे पैमाने पर घड़ियालो की मौत हुई थी । उस समय दो डॉल्फिनों की मौत ने चंबल सेंचुरी अफसरो को सकते मे ला दिया था । उसके बाद डॉल्फिनों के मरने की खबरे आ जाती है कहा जाता है कि चंबल नदी मे अवैध शिकार इस जलचर की मौत का बडा कारण है लेकिन चंबल सेंचुरी के अफसर इन मौतो को स्वाभाविक बता करके शिकार से पल्ला झाड लेता रहा है।

डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया है और सरकार की ओर से उसे बचाने के दावे-दर-दावे हो रहे हैं। यूं उसके शिकार पर 1972 से ही पाबंदी है पर तस्करों की निगाह उस पर बराबर लगी हुई है। डॉल्फिन मानव के मित्र के रूप में जाना जाता है।

उत्तर भारत की पांच प्रमुख नदियों यमुना, चंबल, सिंध, क्वारी व पहुज का संगम स्थल ‘पंचनदा’ डॉल्फिन के लिये सबसे खास पर्यावास है। क्योंकि नदियों का संगम इनका मुख्य प्राकृतिक वास होता है और यहां पर एक साथ 16 से अधिक डॉल्फिनों को एक समय में एक साथ पर्यावरण विशेषज्ञों ने देखा, तभी से देश के प्राणी वैज्ञानिक पंचनदा को डॉल्फिनों के लिये महत्वपूर्ण स्थल मान रहे हैं और इस स्थान को पूर्णतया सुरक्षित रखने की मांग भी कर रहे हैं लेकिन आज तक ऐसा हो नही सका ।