इलाहाबाद, देश के इस लोकतंत्र में युवा वर्ग को प्रमुखता से देखा जाता है क्योंकि युवाओं की भूमिका चुनावी राजनीति में महत्वूर्ण होती हैै। लेकिन चुनाव में उतरे सभी राजनीतिक दलों ने युवाओं को सब्जबाग दिखाकर छलने का काम किया है। इलाहाबाद के बारहों विधानसभा में इस बार कुल 18 से 19 वर्ष की आयु वाले 43,775 मतदाता पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग 23 फरवरी को करेंगे, जिसमें 25068 युवा और 18698 युवतियां हैं। विधानसभावार देखा जाये तो फाफामऊ में 2058 युवा व 1667 युवतियां, सोरांव में 2128 युवा व 1608 युवतियां है।
वहीं, फूलपुर में 2618 युवा व 1718 युवतियां तथा प्रतापपुर में 2847 युवा व 2444 युवतियां हैं। इसके अलावा, हण्डिया में 2627 युवा व 1963 युवतियां, मेजा में 2362 युवा व 1444 युवतियां, करछना में 2099 युवा व 1875 युवतियां, शहर पश्चिमी में 1292 युवा व 989 युवतियां, शहर उत्तरी में 1020 युवा व 711 युवतियां, शहर दक्षिणी में 894 युवा व 731 युवतियां, बारा में 2570 युवा व 1797 युवतिया तथा कोरांव में 2553 युवा व 1751 युवतियां हैं। उत्तर प्रदेश में तो मौजूद सरकार ने आज तक अपने कार्यकाल में किए गए सभी भर्तियों को सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट की चौखट तक पहुंचाया, इस बात को लेकर युवा वर्ग में काफी नाराजगी है।
10 जुलाई 2013 में जब त्रिस्तरीय आरक्षण लागू हुआ तब भाजपा नेता सिद्धार्थ नाथ सिंह, बसपा के तत्कालीन सांसद धनन्जय सिंह ने इलाहाबाद आकर छात्रों का समर्थंन किया और नई आरक्षण प्रणाली का विरोध किया था। बाद में जब प्रतियोगी छात्रों ने अनिल यादव को हटाने तथा लोक सेवा आयोग की सीबीआई जांच की मांग शुरू की तो भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने समर्थंन किया। साथ ही, लोक सेवा आयोग की सीबीआई जांच की मांग को उचित ठहराया और केन्द्र में सरकार बनने के बाद सीबीआई जांच का आश्वासन दिया था।
प्रतियोगी छात्रों का कहना है कि केंद्र में भाजपा की सरकार बने ढाई साल से ज्यादा हो गए, इन नेताओं के आश्वासन जुमला बनकर रह गया। प्रतियोगी छात्रों ने बताया कि अमित शाह को ज्ञापन भेजने तथा सीबीआई जांच को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने के अनुरोध पर आश्वासन मिला था। कांग्रेस की शीला दीक्षित और संजय सिंह से भी मुलाकात करने पर सीबीआई जांच का आश्वासन मिला। अपना दल व बीजेपी समर्थित अनुप्रिया पटेल ने भी जांच कराने का आश्वासन दिया, साथ ही बसपा सांसद मुनकाद अली ने भी सरकार बनने पर जांच का आश्वासन दिया लेकिन सीबीआई जांच से इंकार किया।
कांग्रेस के वर्तमान विधायक अनुग्रह नारायण सिंह को कई बार ज्ञापन देने पर विधानसभा में उठाने की बात किये किन्तु कभी नहीं उठाया और चुप्पी साध ली। छात्रों का कहना है कि अखिलेश यादव से प्रतियोगियों का प्रतिनिधि मंडल मिलने गया था। उस समय मुख्यमंत्री ने कहा कि आपके ज्ञापन पर विचार होगा लेकिन बाहर निकलते ही ज्ञापन को कूड़ेदान में फेंक दिया। युवाओं में असमंजस बना हुआ है कि किस उम्मीद से इन नेताओं का साथ दें? क्या आने वाली सरकार छात्रों की पीड़ा सुनेगी?