नई दिल्ली, देश की अदालतों में न्यायाधीशों की कमी को लेकर चल रही बहस के बीच संसद की एक समिति ने उच्चतम न्यायालय और 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पदों को भरने में अत्यधिक विलंब पर विधि मंत्रालय की राय जानने का निर्णय किया है।
कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय मंत्रालय पर संसद की स्थायी समिति ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पदों को भरने में अत्यधिक विलंब की पड़ताल करने का निर्णय किया है। संसद के एक बुलेटिन में यह जानकारी दी गई है। बुलेटिन के मुताबिक विधि मंत्रालय के अधिकारी इस मुद्दे पर सांसदों की समिति के समक्ष अपनी स्थिति प्रस्तुत करेंगे।
संसदीय समिति ने यह कदम देश के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर द्वारा अदालतों में बढ़ गये मुकदमों की संख्या से निपटने के लिए न्यायधीशों की संख्या को 21 हजार से बढ़ा कर 40 हजार करने के सवाल पर कार्यपालिका की निष्क्रियता की आलोचना किये जाने के बाद उठाया है। प्रधान न्यायाधीश ने यहां गत 24 अप्रैल को राज्यों के मुख्य मंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को सबंधोति करते हुए कहा था कि 1987 में विधि आयोग ने प्रति दस लाख लाोंगों पर दस न्यायाधीश की संख्या को बढ़ा कर 50 न्यायाधीश करने की अनुशंसा की थी लेकिन तब से इस बारे में कुछ नहीं हुआ। पिछले साल 31 दिसम्बर की स्थिति के मुताबिक देश के अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों की 4432 रिक्तियां हैं, जबकि 24 उच्च न्यायालयों में 450 न्यायाधीशों की कमी है। देशभर में अदालतों में तकरीबन तीन करोड़ मामले लंबित हैं। बुलेटिन के मुताबिक संसदीय समिति ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के कामकाज की भी समीक्षा करने का निर्णय किया है। इसके अलावा समिति केन्द्रीय सरकार के तहत लोक सेवकों के कामकाज का आकलन और उन्हें सूचिबद्ध करने के मुद्दे पर भी गौर करेगी।