मथुरा, गोकुल की जिस भूमि में कान्हा घुटुवन चले उसी भूमि में उनकी छठी हर साल जन्माष्टमी के पहले मनाई जाती हैं।इस बार यह छठी 25 अगस्त को गोकुल में मनाई जाएगी।
तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी के विभिन्न अंचलों में त्योहारों पर निराली परंपराएं मनाने का चलन है। इसी क्रम में गोकुल में कान्हा की छठी मनाने की परंपरा है। गोकुल में इस बार भी इसे मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं।
गोकुल के मशहूर राजा ठाकुर मन्दिर के प्रबंधक भीकू जी महराज ने बताया कि मथुरा में जन्म लेने के बाद जब वसुदेव कान्हा को जन्माष्टमी की आधी रात बाद गोकुल लाए तो अगले दिन कान्हा के गोकुल आने की घटना केा एक उत्सव के रूप में मनाया गया तथा इसका नाम नन्दोत्सव दिया गया।राजा ठाकुर मन्दिर में जन्माष्टी के अगले दिन सुबह मां यशोदा एक ओर कान्हा को पालने में सुलाने का प्रयास करती हैं दूसरी तरफ कान्हा के जन्म की खुशी में वे मन्दिर के चैक से नाना प्रकार के पकवान ,व्यंजन, जलेबी , खिलौने रूपए आदि लुटाती हैं तथा आनेवाले श्रद्धालुओं पर हल्दी, पानी और दही मिश्रित जल डाला जाता है।
इसे कान्हा की ’’छीछी’’ कहा जाता है तथा जिस पर यह पड़ जाता है वह धन्य हो जाता है। इसी दौरान गोकुल के ग्वाल बाल और नर नारी वहां पर आ जाते हैं और नन्दबाबा से अनुरोध करते हैं कि कान्हां को नन्दचैक में वे ले चले। नन्दबाबा के द्वारा हरी झंडी देने के बाद पालकी में कान्हा को नन्द चैक तक लाया जाता है जहां पर ब्रजवासी गायन, वादन और नृत्य की त्रिवेणी में डूब जाते हैं और जब यह उत्सव चरम उत्कर्ष पर पहुचता है तो एक प्रकार से हल्दी, पानी और दही के मिश्रण से होली शुरू हो जाती है जो कई घंटे चलती है। वैसे तो लगभग तीन घंटे के इस मनोहारी कार्यक्रम के बाद पालकी में कान्हा को राजा कर ठाकुर को मन्दिर में वापस लाते हैं जहां पर लाला को राजभोग कराकर विश्राम कराया जाता है किंतु गोकुलवासी कान्हा के जगने के बाद फिर नन्दोत्सव मनाने लगते है।
उन्होंने एक रोचक प्रसंग का जिक्र करते हुए बताया कि गोकुल का यह अनूठा नन्दोत्सव अगली जन्माष्टमी तक चलता रहता है। उनका कहना था कि अगले भादों में जन्माष्टमी के पहले ( जब कान्हा एक साल के भी नही हुए थे। मथुरा के ही एक गांव से गर्गाचार्य की पत्नी कुछ महिलाओं के साथ कान्हा को देखने के लिए दक्षिणा लेने गोकुल आईं। दक्षिणा देने के लिए नन्दबाबा ने उन्हें बुलाया था।
उन्हे जब यह मालूम पड़ा कि कान्हा की अभी तक तो छठी भी नही हुई है तो उन्होंने यशोदा से कहा कि वे यह क्या कर रही हैं । कान्हा एक साल के होने आए हैं और वे नन्दोत्सव ही मना रही हैं तथा इसकी अभी तक छठी नही मनाई है।
उन्होंने कहा कि जब तक वे लाला की छठी नही कराएंगी तब तक वे उनके घर में दक्षिणा लेने के लिए प्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रवेश नही करेंगी। इसके बाद यशोदा ने धूमधाम से कान्हा की छठी मनाई तथा गर्गाचार्य की पत्नी और उनके साथ आई महिलाओं ने नन्दबाबा के घर में प्रवेश किया । नन्दबाबा ने उन्हें दक्षिणा के साथ भेंट भी दी। जिस गांव से गर्गाचार्य की पत्नी और उनके साथ महिलाएं आई थी उन्होंने उसका नाम छठीकरा रख दिया।
राजा ठाकुर के प्रबंधक के अनुसार इस बार भी जन्माष्टमी के एक दिन पहले सप्तमी को छठी पूजन होगा। उन्होंने बताया कि कान्हा के नन्दोत्सव में काल की गति रूक गई थी तथा सूर्य और चन्द्रमा कान्हा को किंकर्तव्यविमूढ़ होकर ऐसा देखते रहे कि उन्हें अपनी गति का ध्यान ही नही रहा था।
गोकुल के मशहूर समाजसेवी नारायण तिवारी ने बताया कि गोकुल के नन्दभवन, द्वारकाधीश मन्दिर,, बालकिशनलाल मन्दिर तथा नवनीतप्रिया मन्दिर में जन्माष्टमी की रात ठाकुर के जन्म के दर्शन होते हैं किंतु सुबह उठते ही जब कान्हा के गोकुल आने का समाचार फैलता है तो गोकुल के सभी मन्दिरों में मन्दिर के सेवायत मां यशोदा और नन्दबाबा बनते हैं तथा कान्हा के गोकुल आगमन की खुशी में पकवान, रूपए, खिलौने , वस्त्र, बांसुरी आदि लुटाते हैं ।जिसे इनमें से कुछ भी मिल जाता है वह इसे ठाकुर का प्रसाद मानकार धन्य हो जाता है तथा जिसे नही मिलता है वह दुबारा प्रयास करता है। उन्होंने बताया कि नन्दचैक में आयोजित नन्दोत्सव में सभी लोग शामिल होते हैं तथा इस अनूठे उत्सव को देखने के लिए गोकुल में तीर्थयात्रियों का हजूम जुड़ जाता है।
कुल मिलाकर गोकुल का इतिहास कान्हा की लीलाओं से इतना भरा हुआ है कि इस इतिहास के पूरे पन्ने आज भी इतिहासकारों के लिए पहेली बने हुए हैं।