ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में आख़िरी सांस ली. 80 वर्षीय मुफ्ती मोहम्मद सईद को पिछले दिनों तबियत ख़राब होने की वजह से एम्स में भर्ती कराया गया था.
कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में 12 जनवरी 1936 को एक सामंती परिवार में जन्मे मुफ्ती मोहम्मद सईद ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से क़ानून की पढ़ाई की थी.अपने जवानी के दिनों में उन्हें जम्मू-कश्मीर के कद्दावार नेता शेख अब्दुल्लाह से राजनीतिक करियर के मामले में कड़ी टक्कर मिली.इंदिरा गांधी उन्हें कांग्रेस पार्टी में ले आई थीं जहां वो लंबे समय तक रहे.80 के दशक के अंत में उन्होंने तब के जनता दल के लिए कांग्रेस छोड़ दी थी और वे जनता दल की सरकार बनने पर भारत के पहले मुस्लिम गृहमंत्री बने थे.इसके बाद उन्होंने 28 जुलाई 1999 को अपनी नई पार्टी पीपुल डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के स्थापना के साथ लोकप्रियता की नई लहर देखी.अपनी अलग पार्टी बनाने के तीन साल बाद ही उन्होंने सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण किया. 2014 में उन्हें सूबे के 87 सीटों में से 28 सीटें मिलीं और उन्होंने हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन में सरकार बनाने का जोखिम लिया. बीजेपी ने इस चुनाव में हिंदू बहुल जम्मू में 25 सीटें हासिल कीं. पिछले 15 सालों में मुफ्ती ने ना सिर्फ स्थानीय राजनीति में अपनी पैठ बनाई थी बल्कि अब्दुल्लाह परिवार की मजबूत जड़ों को भी खोदा है और दो बार सूबे के मुख्यमंत्री भी बने.
मुफ़्ती के समर्थक उन्हें बड़े राजनेता के तौर पर देखते हैं और उनके मुताबिक़ उन्होंने 9/11 के बाद भारत-पाकिस्तान शांति बहाल करने में अहम भूमिका निभाई थी. हालांकि उनके विरोधियों का मानना है कि उन्होंने दक्षिण एशिया में बदलते हालात का फ़ायदा उठाकर खुद के लिए वाहवाही बटोरी.मुफ्ती के विरोधी और समर्थक उनके बारे में कुछ भी सोचें लेकिन मुफ्ती इतिहास में एक भारत समर्थक कश्मीरी के तौर पर जाने जाएंगे जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी कश्मीर की अलग-थलग पड़ी जनता को भारत की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया.अपने इस उद्देश्य में उन्होंने जिस तरीके का इस्तेमाल किया, उसे कश्मीर में ‘नरम अलगाववाद’ के रूप में जाना जाता है.