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जस्टिस वीरेंद्र सिंह बने उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त

virendrasinghसुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड जज जस्टिस वीरेंद्र सिंह को यूपी का लोकायुक्त नियुक्त किया है। देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने लोकायुक्त की नियुक्ति की है.यूपी के मेरठ जिले के रहने वाले विरेन्द्र सिंह 2009 से 2011 तक इलाहबाद हाई कोर्ट के जज रह चुके हैं. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त के नाम पर मुहर लगा दी.
लोकायुक्त चयन के लिए मंगलवार को मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की चयन समिति की बैठक पांच घंटे चली लेकिन बैठक बेनतीजा रही। देर रात तक बैठक में एक नाम पर भी सहमति नहीं बन पाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी नए लोकायुक्त चुनन के लिए 16 दिसंबर तक का वक्त दे रखा था।मंगलवार और बुधवार सुबह हुए लोकायुक्त चयन समिति की बैठक बेनतीजा रहने के बाद यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बैठक में पांच नामों पर चर्चा हुई. जिसके बाद कोर्ट ने उन पांच नामों के साथ यूपी सरकार के वकील को 12.30 बजे उपस्थित होने को कहा था.सुप्रीम ने उन पांच नामों में से 1977 बैच के पीसीएस-जे वीरेंद्र सिंह को यूपी का नया लोकायुक्त नियुक्त किया.एक साल से ज्यादा जद्दोजहद और लोकायुक्त नियुक्ति को लेकर ढुलमुल रवैया अपनाए जाने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड जज वीरेंद्र सिंह को यूपी का नया लोकायुक्त नियुक्त किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नया लोकायुक्त चुनने के लिए पिछले साल छह महीने का वक्त दिया था, लेकिन सरकार ने और वक्त मांगा। इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्ते का और वक्त दिया। इसके बाद पांच अगस्त को सरकार ने जस्टिस रवींद्र सिंह का नाम लोकायुक्त के लिए तय कर राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया लेकिन राज्यपाल ने इससे पहले चयन समिति की बैठक का ब्यौरा मांग लिया। इस नाम से सियासी जुड़ाव पर मुख्य न्यायाधीश के एतराज को राज्यपाल ने गंभीरता से लिया। इस बीच सरकार ने चयन समिति की बैठक नहीं बुलाई तो राज्यपाल ने अगस्त में रवींद्र सिंह का नाम खारिज कर दिया और नया नाम भेजने का कहा।
इसी गहमागहमी के बीच सरकार ने चयन समिति की बैठक सितंबर महीने में बुलाई। मुख्यमंत्री आवास पर रविवार को हुई बैठक में जब सरकार की ओर से लोकायुक्त चयन के पांच नामों का पैनल एक नाम पर सहमति के लिए पेश किया गया तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब सरकार लोकायुक्त चयन के लिए लोकायुक्त संशोधन विधेयक विधानमंडल से पास कर चुकी है तो यह देखा जाना चाहिए कि कहीं चयन समिति की बैठक से सदन की अवमानना तो नहीं हो रही है? इस सवाल पर सरकार विधिक राय ले ली जानी चाहिए। इस पर विधिक राय ले ली गई। और पुराने लोकायुक्त एक्ट से लोकायुक्त चुनने का काम आसान हो गया।