जातीय रैलियां रोकने के उपाय पर उच्च न्यायालय में जवाब तलब

लखनऊ,  इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने जातीय रैलियों पर रोक के मामले में केंद्र व राज्य सरकार से पूछा है कि दोनों सरकारें जातीय रैलियां रोकने को क्या उपाय कर रही हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए सिर्फ तीन दिन का समय दिया है।

पहले कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को मामले में जवाब पेश करने का मौका दिया था। साथ ही कोर्ट ने याची को भी पिछले 10 साल में राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित की गई जातीय रैलियों का ब्योरा नए हलफनामे पर दाखिल करने को कहा था। इसी 9 अक्तूबर को मामले की सुनवाई के समय कोर्ट को बताया गया कि जातीय रैलियां रोकने को बीते 21 सितंबर को राज्य सरकार ने आदेश जारी किया है।

इस पर कोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि अगर यह आदेश जारी हुआ तो संबंधित अफसर ने अदालत के पहले के आदेश के तहत इसका हलफनामा पेश क्यों नहीं किया। कोर्ट ने राज्य को इसका हलफनामा दाखिल करने को सिर्फ 3 दिन का समय देकर चेताया कि इसमें नाकाम रहने पर प्रमुख सचिव स्तर के अफसर को सपष्टीकरण देने को पेश होना होगा। उधर, केंद्र के वकील ने भी जवाबी हलफनामा दाखिल करने को 5 दिन का समय मांगा। कोर्ट ने मामले अगली सुनवाई 30 अक्तूबर को नियत की है।

न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने यह आदेश स्थानीय अधिवक्ता मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर दिया।पहले, इस मामले में कोर्ट ने पक्षकारों केंद्र व राज्य सरकार समेत केंद्रीय निर्वाचन आयोग एवं चार राजनीतिक दलों कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से जवाब मांगा था।

याचिकाकर्ता ने यह याचिका वर्ष 2013 में दायर की थी। उसका कहना था कि उत्तर प्रदेश में जातियों पर आधारित राजनीतिक रैलियों की बाढ़ आ गयी है। सियासी दल ब्राहमण रैली, क्षत्रिय रैली, वैश्य सम्मेलन आदि नाम देकर अंधाधुंध जातीय रैलियां कर रहे हैं। जिनपर रोक लगाई जानी चाहिए।

दरअसल, 11 जुलाई 2013 को कोर्ट ने को एक अहम आदेश में पूरे उत्तर प्रदेश में जातियों के आधार पर की जा रही राजनीतिक दलों की रैलियों पर तत्काल रोक लगा दी थी। साथ ही इन पक्षकारों को नोटिस जारी की थी। याची का तर्क था कि इससे सामाजिक एकता और समरसता को जहां नुकसान हो रहा है वहीं, ऐसी जातीय रैलियां तथा सम्मेलन समाज में लोगों के बीच जहर घोलने का काम कर रहे हैं, जो संविधान की मंशा के खिलाफ है।

गौरतलब है कि 2013 में होने वाले आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बसपा ने प्रदेश के करीब 40 जिलों में ब्राहमण भाईचारा सम्मेलन आयोजित किये थे। उसके अलावा सपा ने भी पहले लखनऊ में ऐसा ही सम्मेलन किया था। साथ ही उसने मुस्लिम सम्मेलन भी आयोजित किये थे। इसी परिप्रेक्ष्य में याची ने जातीय रैलियों पर तत्काल रोक लगाने की यह याचिका वर्ष 2013 में दाखिल की थी।

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