नई दिल्ली, बचपन में रामदेव दयानंद सरस्वती की शिक्षाओं से इतना प्रभावित हुए थे कि उन्होंने सरकारी स्कूल को अलविदा कह दिया, घर से भाग गए और गुरूकुल में दाखिला ले लिया। दरअसल, 1875 में लिखी दयानंद सरस्वती की किताब सत्यार्थ प्रकाश का रामदेव पर गहरा असर पड़ा था। सरस्वती के इसी प्रभाव के कारण रामदेव कभी फोन पर हेलो नहीं कहते।
इसके बजाय वह ओम् का जाप करते हैं। सत्यार्थ प्रकाश के पहले अध्याय में ओम् की व्युत्पत्ति और महत्व पर प्रकाश डाला गया है। इस किताब को पढ़ने के बाद रामदेव प्राचीन रिषियों के नक्शे कदम पर चलने की कोशिश करने लगे। कौशिक डेका ने अपनी किताब द बाबा रामदेव फेनोमेननः फ्राम मोक्ष टू मार्किट में बताया कि चूंकि प्राचीन रिशि ब्रह्मचर्य का पालन करते थे, तो उन्होंने कभी शादी नहीं करने का प्रण किया।
डेका की किताब के अनुसार रामदेव ने बताया, इस किताब ने मेरे लिए एक नई दुनिया के द्वार खोल दिए। इसने मेरे अंदर जागरण ला दिया, मुझे जीने का एक मकसद दिया। मैं प्राचीन रिशियों के दिखाए रास्ते पर चलना चाहता था।
उन्होंने कहा, वह (रामदेव) जानते थे कि उनके मां-बाप नियमित स्कूल छोड़ने के उनके फैसले से कभी सहमत नहीं होंगे जहां वह बहुत अच्छा कर रहे थे। इसलिए एक सुबह वह घर से भाग गए और हरियाणा के खानपुर में वैदिक उसूलों पर आधारित एक गुरूकुल में नाम लिखा लिया।
रामदेव ने बताया, दयानंदजी ने मुझे वैदिक शिक्षा में छिपे खजाने का एहसास दिलाया। यह तर्क, तथ्य, युक्ति और प्रमाण पर आधारित एक प्रगतिशील रूख था जबकि ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य हमारे दिमाग को गुलाम बनाना और हमारी तर्कसंगत सोच को कुंद करना था।