राज्यसभा में शरद यादव जी का भाषण मीडिया की उस सच्चाई के बारे में है जिसके बारे में हम सब जानते हैं। मगर पाठक से लेकर दर्शक तक को काठ मार गया है। किसी को इन ख़तरों की आहट से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। एक और बार शरद यादव ने मीडिया की हकीकत सदन में उठाकर लोगों को सुनने समझने का मौका दिया है। इनके भाषण को लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचा देना चाहिए और इनकी एक-एक बात के आलोक में अख़बार और टीवी को देखना होगा। मैंने उनके भाषण के बड़े हिस्से को टाइप किया है ताकि आप पढ़ सकें। मेरा यकीन है कि एक दिन लोग उठेंगे। अख़बारों और चैनलों के ख़िलाफ़ बोलेंगे। वे मीडिया की स्वतंत्रता, उसके काम और सरकार की तरफदारी में फर्क करेंगे। वो लोग भी उठेंगे तो जो अपनी पसंद की सरकार चुनते हैं। वो एक दिन कहेंगे, हमने अपनी पसंद की सरकार चुनी है। मीडिया का चुनाव नहीं किया है। मीडिया का काम है कि हमारी पसंद और हमारी चुनी हुई सरकार से आज़ाद होकर काम करे। हम भले वो दिन न देख सकें, पत्रकार भले ही मजबूर किए जाएं उसी मीडिया में काम करने के लिए लेकिन एक दिन जनता यह सब देख लेगी। बोलते रहिए। लिखते रहिए। शुक्रिया शरद जी। यहां से शरद यादव के भाषण का हिस्सा पढ़िए-
” हम सब लोगों की बात का हिंदुस्तान के लोगों के पास पहुंचाने का रास्ता एक ही है और वह मीडिया है। आज हालत ऐसी है, एक नया मीडिया, विजुअल मीडिया आया है, सोशल मीडिया आया है। मैंने एक दो बात सच्ची कही है, उपसभापति जी, मैं आपसे कह नहीं सकता कि सोशल मीडिया किस तरह से बढ़ा है, उसमें कई तरह की अफवाह चल रही है, लेकिन किस तरह से गाली-गलौज चल रही है, उसका कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता है। मजीठिया कमीशन कब से मीडिया के लिए बना हुआ है। आज ये सारा मीडिया-हम लोकतंत्र में चुनाव सुधार की बात कह रहे हैं कि चुनाव सुधार कैसे हो। इस चुनाव सुधार की सबसे बड़ी बात है- हमारी लोकशाही और लोकतंत्र कहां जा रहा है, इसको वहां पहुंचाने वाले कौन लोग हैं, वह तो मीडिया ही है। जिसे चौथा स्तंभ कहते हैं, वही है न? उसकी ये हालत है? पत्रकार के लिए मजीठिया कमीशन बना हुआ है।
याद रखना मीडिया का मतलब है, पत्रकारिता का मतलब है पत्रकार और वही उसकी आत्मा है। यह लोकशाही या लोकतंत्र जो ख़तरे में है, उसका एक कारण यह है कि हमने पत्रकार को ठेके में डाल दिया है। ठेके में नहीं डाल दिया है, बल्कि उससे ज़्यादा हायर एंड फायर एक नई चीज़ यूरोप से आई है यानी सबसे ज़्यादा हायर एंड फायर यदि कहीं है तो वह पत्रकार है। मैं बड़े-बड़े पत्रकारों के साथ रहा हूं। मैं बड़े-बड़े लोगों के साथ रहा हूं। हमने पहले भी मीडिया देखा है, आज का मीडिया भी देखा है। उसकी सबसे बड़ी आत्मा कौन है? सच्ची ख़बर आए कहां से? राम गोपाल जी, जब पिछला चुनाव विधान सभा का हो रहा था तो मैंने ख़ुद जाकर चुनाव आयोग को कहा था कि यह पेड न्यूज़ है। आज जो पत्रकार हैं, वे बहुत बेचैन और परेशान हैं। पत्रकार के पास ईमान भी है लेकिन वह लिख नहीं सकता है। मालिक के सामने उसे कह दिया जाता है कि इस लाइन पर लिखो। इस तरह से लिखो। उसका अपना परिवार है। वह कहां पर जाए? वह सच्चाई के लिए कुछ लिखना चाहता है।
सर, आज सब से ज़्यादा ठेके पर लोग रखे जा रहे हैं और पूरे हिंदुस्तान में लोगों के लिए कोई नौकरी या रोज़गार पैदा नहीं हो रहा है। सब जगह पूंजीपति और सारे प्राइवेट सेक्टर के लोग हैं। अख़बार में सबसे ज़्यादा लोगों को ठेके पर रखा जाता है। इस तरह मजीठिया कमीशन कौन लागू करेगा? इनके कर्मचारियों का कोई यूनियन नहीं बनने देता है। आप किसी पत्रकार से सच्ची बात कहो, तो वह दहशत में आ जाएगा क्योंकि उसका मालिक दूसरे दिन उसे निकाल बाहर करेगा। तो यह मीडिया कैसे सुधरेगा।
हमारे लोकतंत्र में बाज़ार आ गया है। खूब आए लेकिन यह जो मीडिया है, इसको हमने किनके हाथों में सौंप दिया है? यह किन-किन लोगों के पास चला गया है? इस देश का क्या होगा। अब हिंदुस्तान टाइम्स भी बिकने वाला है। कैसे चलेगा यह देश? यह चुनाव सुधार, यह बहस, ये सारी चीज़ कहां से आएंगी? कोई यहां पर बोलने के लिए तैयार नहीं है? निश्चिततौर पर मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जो मीडिया है, लोकशाही में, लोकतंत्र में यह आपके हाथ में है, इस पार्लियामेंट के हाथ में है। कोई रास्ता निकलेगा या नहीं निकलेगा? ये जो पत्रकार हैं, ये चौथा खंभा हैं, उसके मालिक नहीं हैं और हिंदुस्तान में जब से बाज़ार आया है तब से तो लोगों की पूंजी इतने बड़े पैमाने पर बढ़ी है। मैं आज बोल रहा हूं तो यह मीडिया मेरे ख़िलाफ़ तंज कसेगा, वह बुरा लिखेगा। लेकिन मेरे जैसा आदमी जब चार साढ़े चार साल जेल में बंद रहकर आज़ाद भारत में आया तो अगर अब मैं जाऊंगा तो मैं समझता हूं कि मैं हिन्दुस्तान की जनता के साथ विश्वासघात करके जाऊंगा। सर, आज सबसे ज़्यादा ठेके पर लोग रखे जा रहे हैं और पूरे हिंदुस्तान में लोगों के लिए कोई नौकरी या रोज़गार पैदा नहीं हो रहा है। सब जगह पूंजीपति और सारे प्राइवेट सेक्टर के लोग हैं। अख़बार में सबसे ज़्यादा लोगों को ठेके पर रखा जाता है। इस तरह मजीठिया कमीशन कौन लागू करेगा? इनके कर्मचारियों का कोई यूनियन नहीं बनने देता है। आप किसी पत्रकार से सच्ची बात कहो, तो वह दहशत में आ जाएगा क्योंकि उसका मालिक दूसरे दिन उसे निकाल बाहर करेगा। तो यह मीडिया कैसे सुधरेगा। अगर वही नहीं सुधरेगा तो चुनाव सुधार की यह सारी बहस मर जाएगी। इस ईमान को चारों तरफ से पूंजी ने घेर लिया है। बड़े पैसे वालों ने घेर लिया है और अब सब से बड़ी मुश्किल यह है कि बहस करें तो कैसे करें। सर, यह देश बहुत बड़ा है। एक कंटिनेंट है, लेकिन हमारी बहस और हमारी बात कहीं जाने को तैयार नहीं है। कहीं पहुंचने को तैयार नहीं है।
सर, इस देश में क्राॅस होल्डिंग बंद होनी चाहिए। यह कानून पास करो, फिर देखेंगे कि हिंदुस्तान कैसे नहीं सुधरता है। हमारे जैसे कई लोग हिन्दुस्तान में हैं, जिसने सच को बहुत बग़ावत के साथ बोला है। पहले भी हिन्दुस्तान को बनाने में ऐसे लोगों ने काम किया है। मैं नहीं मानता कि आज ऐसे लोग नहीं हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं। जो सच को ज़मीन पर उतारना चाहते हैं। लेकिन कैसे उतारें? यानी इस चौथे खंभे पर आपातकाल लग गया है। इस देश में ऐसा कानून क्यों नहीं बनता कि कोई भी व्यापारी या किसी तरह की क्रॉस होल्डिंग नहीं कर सकता है। तब हिन्दुस्तान बनेगा। सर, हिन्दुस्तान जिस दिन आज़ाद हुआ था, तो इसी तरह हुआ था।
सर, जब इनके यहां चुनाव हो रहा था, तो मैं तीन-तीन अख़बार के पास गया था। उन अख़बारों में मेरा नाम कहीं नहीं छप रहा था। मैं महीने भर से शिकायत कर रहा था, लेकिन उसमें मेरे बारे में एक लाइन नहीं आई। वे आज भी नहीं छापेंगे क्योंकि वह मालिक बैठा हुआ है। सारे पत्रकार मेरी बात को हृदय से ज़ब्त करेंगे लेकिन उसका मालिक उसकी तबाही करेगा।””
साभार वरिष्ठ टीवी जर्नलिस्ट रवीश कुमार के ब्लाग से