नई दिल्ली/यरूश्लम, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुप्रतीक्षित इजरायल यात्रा संभवतः इस साल के आखिर तक हो सकती है। यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा यहूदी देश की पहली यात्रा होगी।
इजरायल में भारत के राजदूत पवन कपूर ने स्थानीय समाचार पोर्टल वायनेट को यात्रा के बारे में जानकारी दी और बताया कि दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के 25 साल पूरे हो गए हैं। कपूर ने इजरायल के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने के उन प्रयासों को भी रेखांकित किया जिसमें मेक इन इंडिया अभियान के तहत विनिर्माण इकाइयों की स्थापना करने पर विचार किया जा रहा है। इस बात की जानकारी रखने वाले अन्य सूत्रों ने बताया कि दोनों पक्षों ने तारीख अभी तय नहीं की है लेकिन इसके (यात्रा के) जून-जुलाई 2017 में होने की संभावना है। भारत और इजरायल के बीच वर्ष 1992 से शुरू हुए राजनयिक संबंधों में पिछले 25 सालों में लगातार प्रगति हुई है।
हालांकि इस दौरान नई दिल्ली से कोई उच्च स्तर का पदाधिकारी इस्राइल की यात्रा पर नहीं आया। अक्तूबर 2015 में प्रणब मुखर्जी की इजरायल यात्रा के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने इस्राइल के साथ संबंधों को अधिक प्राथमिकता दी है। यह किसी भारतीय प्रमुख द्वारा यहूदी देश की पहली यात्रा थी। इसके बाद प्रणब मुखर्जी के आमंत्रण पर इजरायल के राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन ने पिछले साल भारत का दौरा किया था। करीब 20 वर्ष के अंतराल के बाद किसी इजरायल प्रमुख की यह दूसरी भारत यात्रा थी। भारत में किसी इजरायल के प्रधानमंत्री की एकमात्र यात्रा वर्ष 2003 में की गई जब एरियल शैरॉन नयी दिल्ली आए थे। नयी दिल्ली में भले ही किसी भी पार्टी की सरकार सत्ता में रही हो, दोनों देशों के बीच संबंधों में लगातार सुधार आया है। मोदी और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मित्रता को लेकर हो रही चर्चाओं के बीच मोदी की यात्रा पर बातचीत की जा रही है।दोनों नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र संबंधी कार्यक्रमों के इतर विदेशी जमीन पर दो बार पहले मुलाकात की है और ऐसा बताया जा रहा है कि दोनों फोन पर एक दूसरे के लगातार संपर्क में हैं।
मोदी ने वर्ष 2015 में पेरिस जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के इतर उनकी बैठक के दौरान नेतन्याहू से कहा, मैं खुश हूं कि हम अकसर फोन पर बात करते हैं, हम सभी बातों पर चर्चा कर सकते हैं। ऐसा बहुत कम ही हुआ है। आपके संदर्भ में ऐसा हुआ है। इसके जवाब में इजरायल के प्रधानमंत्री ने भी कहा था, आपके संदर्भ में भी ऐसा ही है। वर्ष 2014 के गाजा युद्ध में इजरायल की आक्रामकता की आलोचना करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट पर वर्ष 2015 में यूएनएचआरसी के मतदान में भारत के भाग नहीं लेने को कई लोगों ने संबंधों में काफी सुधार का प्रतीक बताया था जो बाद में बिना किसी रुकावट के पूर्णतयः सामान्य संबंधों में बदल गए। कुछ लोगों ने इस हृदय परिवर्तन का श्रेय दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की निकटता को दिया है। भारत ने बाद में स्पष्ट किया कि यह मतदान उस अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत के संबंध में उसका सैद्धांतिक रूख था जिसका प्रस्ताव में जिक्र किया गया था और यह नीति में किसी प्रकार के बदलाव को नहीं दर्शाता है। नेतन्याहू ने मोदी को अकसर मेरा मित्र करार दिया है और वह भारत में इजरायल का आयात बढ़ाने के लिए कदम उठाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने जोर दिया कि जहां तक दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की बात है तो अपार संभावनाएं है। दोनों देशों के बीच वर्ष 1992 में वाषिर्क व्यापार 20 करोड़ डॉलर था जबकि पिछले साल द्विपक्षीय कारोबार करीब 4.5 अरब डॉलर रहा। दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अक्सर ध्यान आकर्षित करते रहे हैं और इन संबंधों ने रणनीतिक आयाम हासिल किए हैं।