जौनपुर में महानायिका झलकारीबाई की मनायी गयी जयंती

जौनपुर, उत्तर प्रदेश में जौनपुर के सरांवा गाव में स्थित शहीद लाल बहादुर गुप्त स्मारक पर गुरूवार को महानायिक झलकारी बाई का 188 वां जन्मदिन मनाया । इस अवसर पर शहीद स्मारक मोमबत्ती एवं अगरबत्ती जला कर उन्हें श्रंद्धाजलि दी गयर ।
शहीद स्मारक पर उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए लक्ष्मीबाई ब्रिगेड की अध्यक्ष मंजीत कौर ने कहा कि भारत की स्वाधीनता के लिए 1857 में हुए संग्राम में पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कन्धे से कन्धा मिलाकर बराबर का सहयोग दिया था। कहीं.कहीं तो उनकी वीरता को देखकर अंग्रेज अधिकारी एवं पुलिसकर्मी आश्चर्यचकित रह जाते थे। ऐसी ही एक वीरांगना थी झलकारी बाईए जिसने अपने वीरोचित कार्यों से पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया।
उन्होंने कहा कि वीरांगना झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बरए 1830 को झासी जिले के भोजला गांव में हुआ था। उनके पिता मूलचन्द्र सेना में काम करते थे। घर के वातावरण में शौर्य और देशभक्ति की भावना का प्रभाव था। घर में प्रायः सेना द्वारा लड़े गये युद्धए सैन्य व्यूह और विजयों की चर्चा होती थी। उन्होंने कहा कि मूलचन्द्र जी ने बचपन से ही झलकारी को अस्त्र.शस्त्रों का संचालन सिखाया। इसके साथ ही पेड़ों पर चढ़नेए नदियों में तैरने और ऊँचाई से छलांग लगाने जैसे कार्यों में भी झलकारी पारंगत हो गयी।
सुश्री कौर ने कहा कि एक बार झलकारी बाई जंगल से लकड़ी काट कर ला रही थीए तो उसका सामना एक खूँखार चीते से हो गया। झलकारी ने कटार के एक वार से चीते का काम तमाम कर दिया और उसकी लाश कन्धे पर लादकर ले आयी। इससे गाँव में शोर मच गया और एकबार उसके गाँव के प्रधान को मार्ग में डाकुओं ने घेर लिया। संयोगवश झलकारी भी वहाँ आ गयी। प्रधान को डाकुओं के चंगुल से छुड़ा लिया। ऐसी वीरोचित घटनाओं से झलकारी पूरे गाँव की प्रिय बेटी बन गयी।
उन्होंने कहा कि जब झलकारी बाई युवा हुईए तो उसका विवाह झाँसी की सेना में तोपची पूरन कोरी से हुआ। जब झलकारी रानी लक्ष्मीबाई से आशीर्वाद लेने गयीए तो उन्होंने उसके सुगठित शरीर और शस्त्राभ्यास को देखकर उसे दुर्गा दल में भरती कर लिया। यह कार्य झलकारी के स्वभाव के अनुरूप ही था। उन्होंने कहा कि जब 1857 में अंग्रेजी सेना झांसी पर अधिकार करने के लिए किले में घुसने का प्रयास कर रही थीए तो झलकारी बाई शीघ्रता से रानी के महल में पहुँची और उन्हें दत्तक पुत्र सहित सुरक्षित किले से बाहर जाने में सहायता दी।