कानपुर, कानपुर देहात के पुखरायां में हुए भीषण ट्रेन हादसे में अपनों को देखने आए एक लोको पायलट का दावा है कि एलएचबी कोच से ऐसी भयावहता को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे कोच भारत में बनने लगे है लेकिन उनके काम की रफ्तार इतनी धीमी है कि अभी एक दशक का समय लग जाएगा।
इंदौर पटना एक्सप्रेस के भीषण हादसे में पटना के रवीन्द्र सिंह हैलट अस्पताल में जीवन मौत का संघर्ष कर रहे है। सिंह के रिश्तेदार इलाहाबाद में तैनात लोकोपायलट अपनों को देखने अस्पताल पहुंचे। यहां पर उन्होंने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यूपीए सरकार ने रेलवे में हादसों की भयावहता को रोकने के लिए जर्मन तकनीक से एलएचबी कोच बनाने का फैसला लिया था। इसकी शुरूआत भी यूपीए कार्यकाल में हो गई लेकिन इसके काम की रफ्तार बहुत धीमी है। कहा कि एलएचबी कोच एंटी टेलीस्कोपिक तकनीक पर आधारित है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि ट्रेन के टक्कर या ट्रेन के पटरी से उतरने पर एक कोच दूसरे में नहीं घुसते हैं। बताया कि दुर्घटना की स्थिति में पीछे वाला कोच आगे वाले कोच के ऊपर चला जाता है। जिससे दुर्घटना में ऐसी वीभत्सता नहीं होगी। कहा कि अब तक देश में जर्मन तकनीक पर लिंक हॉफ मैन बुश (एलएचबी) कोच लगभग चार हजार बन चुके है। जो भारतीय रेलवे के विस्तार की दृष्टि बहुत कम हैं।