नयी दिल्ली, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की सरकार तिब्बत में बगावत को हमेशा के लिए शांत करनेे के लिए शिक्षा को हथियार बना कर काम कर रही है और तिब्बत में जगह-जगह तथाकथित आवासीय विद्यालयों में करीब आठ लाख तिब्बती बच्चों को माता-पिता की इच्छा के खिलाफ बलपूर्वक भर्ती कराके उन्हें तिब्बती भाषा एवं संस्कृति से पृथक कर घृणा एवं हिंसा सिखायी जा रही है।
तिब्बती भाषा एवं संस्कृति के विद्वान एवं तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट के डॉ. ग्याल लो ने यहां सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रैटजी (सीसीएएस) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में तिब्बत में चीनी कम्युनिस्ट शासन की इस नयी दमनकारी बर्बर नीति का खुलासा किया। यह प्रणाली चीनी छात्रों की तुलना में तिब्बती और जातीय अल्पसंख्यक बच्चों को अधिक लक्षित करके बनायी गयी है। कार्यक्रम की अध्यक्षता सीसीएएस के अध्यक्ष जयदेव रानाडे ने की।
डाॅ. ग्याल लो ने बताया कि तिब्बती बच्चों पर चीन के सरकारी बोर्डिंग स्कूलों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। ये संस्थान तिब्बत में तिब्बती युवाओं की राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना को पांरपरिक संस्कारों से दूर करके चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एजेंडा में ढाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीनी बोर्डिंग स्कूल तिब्बती बच्चों की राजनीतिक विचारधारा और सांस्कृतिक संस्कारों को समाप्त करके उन्हें एक चीनी विचार में आत्मसात करने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि ये संस्थान, जिन्हें अक्सर आधुनिकीकरण और शिक्षा के उपकरण के रूप में स्थापित किया जाता है, ऐसे स्थान बन गए हैं जहाँ तिब्बती बच्चों को उनकी भाषा, धार्मिक प्रथाओं और ऐतिहासिक परंपराओं को नष्ट करने के लिए व्यवस्थित प्रयासों के अधीन किया जाता है।
डॉ. ग्याल लो ने खुलासा किया कि 78 प्रतिशत तिब्बती छात्र (लगभग आठ लाख बच्चे) अब तिब्बत में औपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूलों के एक नेटवर्क तक सीमित हैं, जहाँ उन्हें चीनी सरकार की नीति के तहत अपने परिवारों से जबरन अलग होने और व्यवस्थित एक चीन के सांस्कृतिक विचार में ढाला जा रहा है। इसके लिए माता-पिता को डराने-धमकाने और विकल्पों की कमी के ज़रिए अपने बच्चों को इन संस्थानों में भेजने के लिए मजबूर किया जाता है।
उन्होंने कई ऐसे वीडियो भी साझा किये जिनमें बच्चों को बलपूर्वक गाड़ियों में डाल कर बोर्डिंग स्कूल ले जाया जा रहा है और एक बच्चा किसी तरह से छूट कर तेजी से भाग कर एक नदी में छलांग लगा देता है और आत्महत्या का प्रयास करता है हालांकि उसे किसी तरह से बचा लिया जाता है।
उन्होंनने कहा कि बोर्डिंग स्कूलों में छात्रों को अनिवार्य चीनी भाषा की शिक्षा और राजनीतिक शिक्षा पढ़ाई जाती है, जबकि उन्हें अपनी मूल भाषा, धार्मिक प्रथाओं और सांस्कृतिक परंपराओं से घृणा सिखायी जा रही है। जब शोधकर्ताओं ने बोर्डिंग स्कूल के छात्रों के बीच गंभीर मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक आघात का दस्तावेजीकरण किया, तो पाया कि छात्रों में अत्यधिक अलगाव और अकेलापन है।
उन्होंने कहा कि वर्षों बाद जब बच्चे बोर्डिंग स्कूल से घर लौटते हैं तो उन्हें अपने मातापिता को पहचानने में समस्या होती है और उनके साथ मनावैज्ञानिक लगाव नहीं होता है। इससे उनका जीवन मशीनी हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि चीनी शासन की इस नीति के कारण तिब्बती बच्चे बुरी तरह से बरबाद हो रहे हैं। वे ना तो चीनी व्यवस्था के लिए फिट हो पा रहे हैं और ना ही तिब्बती व्यवस्था में अनुकूल रह गये हैं। इस तरह से वे केवल मजदूरी करने लायक ही बचे हैं। उन्हें धर्म से भी अलग कर दिया गया है जिससे उनके मातापिता के धार्मिक आस्था एवं कार्यकलाप से उन्हें कोई लगाव नहीं है बल्कि ऐसे उदाहरण भी हैं जिनमें बच्चे अपने मातापिता को और शिक्षकों को बौद्ध धर्म की शिक्षा देने पर भड़क कर अपशब्द तक कहने लगे हैं।