नई दिल्ली, केंद्र सरकार की ओर से तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सख्त रूख अपनाने की संभावना के बीच देश की कुछ प्रमुख मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने आज कहा कि सरकार को देश की सबसे बड़ी अदालत में इस महिला विरोधी प्रथा का विरोध करना चाहिए और इस पर रोक सुनिश्चित कराना चाहिए। सरकार के सूत्रों के हवाले से खबर आई है कि सरकार न्यायालय में यह पक्ष रखेगी कि एक साथ तीन तलाक को शरीयत के तहत अपरिहार्य तथा अपरिवर्तनीय बताना पूरी तरह गलत है और यह अनुचित, अतार्किक और भेदभावपूर्ण है, क्योंकि दुनिया के ढेर सारे मुस्लिम देशों में शादी के कानून को लेकर नियमन की व्यवस्था है। इस महीने के अंत में कानून मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस मुद्दे पर अपना जवाब दाखिल करेगा।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह-संस्थापक नूरजहां सफिया नियाज ने कहा, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को खुद तीन तलाक की व्यवस्था को खत्म करने के लिए प्रयास करना चाहिए था। पर उसने ऐसा नहीं किया। अब सरकार को इस बारे में सख्त रूख अपनाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की बात करनी चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता और स्तम्भकार नाइश हसन का कहना है, शाह बानो मामले के समय ही पर्सनल लॉ बोर्ड को एक साथ तीन तलाक के मसले पर सोचना चाहिए था। ये लोग जो उस समय कर रहे थे, वही बात अब कर रहे हैं। ये मुस्लिम महिलाओं को उनका हक नहीं देना चाहते। नाइश हसन ने कहा, अब सरकार अगर एक साथ तीन तलाक की व्यवस्था के खिलाफ कोई कदम उठाने जा रही है तो हम इसका स्वागत करते हैं। हमारी मांग है कि सरकार मुस्लिम महिलाओं के अधिकार के पक्ष में रूख अपनाए। मुस्लिम एवं दलित महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम करने वाले संगठन तहरीक-ए-निसवां की अध्यक्ष ताहिरा हसन का कहना है कि एक साथ तीन तलाक की व्यवस्था महिला विरोधी है और सरकार को इस पर रोक के लिए प्रयास करने चाहिए।