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दंडात्मक कार्रवाई की बजाय छात्रों को सुधार का अवसर देना सही: उच्च न्यायालय

प्रयागराज, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि छात्रों के खिलाफ कालेजों द्वारा पूरी तरह से दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। छात्र युवा और वयस्क हैं, जिन्हें सुधार का मौका दिया जाना चाहिए।

अदालत ने याची के खिलाफ तकनीकी संस्थान की ओर से 25 फरवरी 2020 और 16 मार्च 2020 को जारी किए गए आदेश को रद्द कर दिया और एमिटी स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी प्रशासन को नई अंकतालिका जारी करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने प्रखर नगर की ओर से दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

याची एमिटी स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में बीटेक का छात्र है। संस्थान प्रशासन ने विभिन्न आरोपों में अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उसे पहले छह महीने के लिए निष्कासित कर दिया था। बाद में इसे अपील में घटाकर तीन महीने कर दिया गया। याची ने संस्थान प्रशासन के निष्कासित करने के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। याची की ओर से कहा गया कि याची के खिलाफ आरोप अस्पष्ट है और सामान्य प्रकृति के हैं। निष्कासन को सही ठहराने वाले तथ्य रिकॉर्ड पर नहीं है।

प्रतिवादी की ओर से कहा गया कि कार्रवाई उचित जांच के बाद हुई है। कोर्ट ने पाया कि तकनीकी प्रशासन की ओर से की गई कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। कोर्ट ने कहा कि संस्थान में अनुशासन बनाए रखने के लिए उन आवश्यक तत्वों को शामिल करना होगा, जो इसके शैक्षणिक माहौल और सुधारात्मक दृष्टिकोण के लिए अनुकूल हो और जो छात्रों के परिवर्तन के लिए भी महत्वपूर्ण है।