नई दिल्ली, न्यायपालिका मे दलित, पिछड़े, महिला जजों की संख्या नगण्य, फिर भी मोदी सरकार को न्यायपालिका मे आरक्षण से परहेज है. केंद्र सरकार के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में जानकारी देते हुए कहा कि न्याय प्रणाली में हमें, दलित, पिछड़े और महिला जजों की जरूरत है। लेकिन हम आरक्षण के सहारे जजों की नियुक्ति करने के पक्ष में नहीं है।
उन्होने कहा कि वह जजों की संख्या को जागरूकता और संवेदनशीलता के दम पर बढ़ाने के पक्षधर हैं। कांग्रेस सांसद आर रहमान के प्रश्न के उत्तर में रविशंकर प्रसाद ने राज्यसभा में कहा बड़ी अदालतों में नियुक्ति के लिए किसी भी तरह के आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। सरकार यह ध्यान रखती है, कि अल्पसंख्यकों, दलित, एससी और एसटी महिलाओं को आगे लाया जाए। उन्होंने कहा कि यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि सुप्रीम कोर्ट महिला जज की नियुक्ति में जानबूझकर भेदभाव कर रही है।
केंद्र सरकार के कानून मंत्री ने कहा कि यह बहुत ही बड़ी प्रणाली है, जिसमें सरकार का रोल बहुत छोटा होता है। बतौर कानून मंत्री मैं जजों की नियुक्ति को लेकर सवेंदनशील रहूंगा। प्रसाद ने कहा कि उच्च न्यायपालिकाओं में महिला वकीलों की संख्या काफी अच्छी है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायपालिका में आर्टिकल नंबर 124 और आर्टिकल नंबर 217 के तहत नियुक्ति होती है। इन आर्टिकल में किसी भी तरह के आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। फिर भी हमने हाईकोर्ट के उच्च न्यायधीश से अपील की है कि नियुक्ति के समय वह अल्पसंख्यकों, दलित,एसटी और महिलाओं का विशेष ध्यान रखें।
पिछले 3 साल की मोदी सरकार में 16443 में से 1473 महिला जजों की नियुक्ति हुई है । निचली अदालतों में जजों के 4846 पद खाली हैं।
1– निचली अदालतों में-4704
2-हाईकोर्ट में-66
3-सुप्रीमकोर्ट में-1