जगदलपुर, छत्तीसगढ़ के बस्तर में विश्व में सबसे अधिक दिनों तक अर्थात् 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा तो अपने आप में अनूठा तो है ही, इस मौके पर लगने वाले ‘मंद पसरा’, जो लोक बोली के शब्द का अर्थ है – देशी शराब का बाजार, भी देशी-विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
बस्तर दशहरा को जानने और बूझने की बड़ी जिज्ञासा होती है, इसलिए विदेशों से तथा भारत के कोने-कोने से पर्यटक इन दिनों लगातार बस्तर आ रहे हैं। बस्तर की धरती में स्वर्ग की अनेक परिकल्पनाएं हैं। बस्तर का जनजीवन, लोक कला, परम्परा, पर्व के बारे में सदैव जानने की इच्छा रही है, यही कारण है कि यहां का जीवन दर्शन देश के अन्य भागों से बस्तर को अलग करता है। इन दिनों बस्तर दशहरा की धूम मची हुई हैं। विश्व में सबसे अधिक दिनों तक अर्थात् 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा के बारे में लोग जानना चाहते हैं, और बस्तर को बूझना भी चाहते हैं। बस्तर अगाध है और अंचल में रहने वाले जनजातियों की कला-संस्कृति भी, जिसे सदैव सम्मान मिलना चाहिए।
बस्तर दशहरा के विभिन्न रस्मों के साथ अंतिम दिनों में यहां शहर के बीचों-बीच पारम्परिक बाजार लगता है जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों से अनेक चीजें बिक्री के लिए सुलभ रहता है। उन्हीं में से एक अनूठी बाजार देखने को मिलेगी जो संपूर्ण भारत में देखने को नहीं मिलेगा, वह है यहां का ‘मंद पसरा’ जिसका अर्थ है – देशी शराब का बाजार।
यहां दशहरा के अंतिम विधानों के दौर में ग्रामीण क्षेत्रों से महिलाएं महुआ से बनी शराब बेचने के लिए शहर लेकर आती हैं, जिसमें महिलाओं के साथ छोटी उम्र की लड़कियां भी शामिल होती हैं। ये बाजार शहर के वन विभाग कार्यालय के परिसर में तथा पुराने तहसील कार्यालय के परिसर में लगता है। इस शराब को बेचने के लिए बड़ी तादात में महिलाएं सुबह से जुट जाती है। इसे पीने वाले ज्यादातर शहरी होते हैं। इस बाजार को शासन की ओर से कोई मनाही नहीं होती। लोगों का मानना है की यह बाजार परम्परा और संस्कृति का एक हिस्सा है, और लोग इस बाजार को नजदीक से निहारने के लिए, शहरी लोग भी जुटते हैं। इस शराब की बिक्री से महिलाओं को अधिक आमदनी नहीं होती। वे सिर्फ इतना कमा लेती हैं कि जब दशहरा पर्व समाप्त हो, और वे घर के लिए लौटें तो उनके हाथों में उनके बच्चों के लिए कुछ खाने-पीने की वस्तुए, कुछ नए वस्त्र हों, उनके अपने बच्चों के चेहरे पर खुशी की झलक देख सकें। एक महिला अधिक से अधिक पांच से दस बोतल देशी मदिरा बेच पाती है और अपने परिवार की खुशी बटोरती है।
कोड़ेनार के आदिवासी प्रमुख सोनसिंह ने बताया कि ये हमारी संस्कृति एवं परंपरा है पैसा कमाना नहीं है। परंरपरा को निभाना हमारा उद्देश्य है।