नई दिल्ली, दुनियाभर में ये बड़े खतरे मड़रा रहे है. विश्व बैंक ने दुनिया को आर्थिक मंदी को लेकर आगाह किया है. वहीं भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर दोनों साल के दौरान 7.3 फीसदी रहने का अनुमान है, क्योंकि भारत पर आर्थिक मंदी का खतरा इस बार कम रहेगा. यह अमेरिकी रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है. हाल ही में वर्ल्ड बैंक ने भी अपनी आर्थिक मंदी को लेकर सावधान किया है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं एक बार फिर संकट में घिर सकती हैं. इसके बड़ा कारण बढ़ता हुआ कर्ज, बैंकिंग सिस्टम का चरमरा जाना और अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वॉर है.
ग्लोबल अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा उभरते बाजारों से आता है, लेकिन इनमें जोखिम का खतरा काफी है. अधिकतर ऐसे बाजारों में विदेशी मुद्रा और डॉलर का दबदबा रहता है. ऐसी स्थिति में जब अमेरिका ब्याज दर बढ़ाता है, तो सिस्टम से पैसा बाहर जाने लगता है और बाजार कमजोर पड़ जाते हैं. हाल में अर्जेंटीना और तुर्की में कुछ ऐसा ही देखने को मिला.
साल 2008 के बाद से अब तक दुनिया में कर्ज का स्तर 60 फीसदी तक बढ़ गया है. विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं में “डूबा कर्ज” एक बड़ी समस्या बन कर उभरा है. तकरीबन 1,82,000 करोड़ डॉलर सरकारी और प्राइवेट क्षेत्रों में कर्ज़ के तौर पर फंसे हुए हैं. अब सवाल उठने लगा है कि अगर अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है तो क्या हमारे पास कर्ज की भरपाई करने के लिए पूंजी होगी.
दुनियाभर के बैंकिग सिस्टम चरमराने लगे है. मौजूदा समय में बैंकिंग सेक्टर के अलावा अब कई वित्तीय संस्थाएं भी लेनदेन में सक्रिय हो गए हैं. यूरोपियन सेंट्रल बैंक के मुतबिक यूरोपीय संघ में ऐसे शेडो बैंक करीब 40 फीसदी वित्तीय लेनदेन के लिए जिम्मेदार हैं. यही नहीं, बहुत से वित्तीय संस्थाओं के पास भी जोखिमों से निपटने के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं है.
माना जा रहा है कि मार्च 2019 में ब्रिटेन, यूरोपीय संघ से पूरी तरह अलग हो जाएगा. समय तेजी से निकल रहा है लेकिन अब तक यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने की योजना पूरी तरह से तैयार नहीं हो सकी है. अगर मुक्त व्यापार समझौता नहीं हो पाता है तो सिर्फ जर्मन कंपनियों को ही सालाना 3 अरब यूरो का टैरिफ चुकाना होगा. ऐसे में यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर संकट गहरा सकता है. अगली स्लाइड में जानिए भारत पर क्या होगा असर..
अमेरिका और चीन एक दूसरे के प्रोडक्ट पर शुल्क लगा रहे हैं. चीन ने अमेरिकी मांस और सब्जियों पर तो वहीं अमेरिका ने चीन से आने वाले स्टील, टैक्सटाइल्स और तकनीक पर शुल्क बढ़ा दिया है. दोनों देश का यह विवाद करीब 360 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. आईएमएफ के अनुमान मुताबिक ये कारोबारी जंग अमेरिका की जीडीपी को 0.9 फीसदी तो वहीं चीन की जीडीपी को 0.6 फीसदी तक कमजोर कर सकती है.