नई दिल्ली, बर्लिन की भ्रष्टाचार आकलन एवं निगरानी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) ने भ्रष्टाचार के मामले में दुनिया के कुल 176 देशों की सूची जारी की है। टीआई की सीपीआई-2016 की रिपोर्ट के अनुसार न्यूजीलैंड और डेनमार्क को सबसे कम भ्रष्टाचार वाला देश बताया गया है। सर्वेक्षण में इन देशों को 90 अंक मिले हैं, जबकि सोमालिया को सबसे भ्रष्ट देश बताया गया है और उसे केवल 10 अंक मिले हैं।
भ्रष्टाचार आकलन एवं निगरानी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) ने ने भारत को 79वें स्थान पर रखा है। करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2016 में भारत और चीन को भ्रष्टाचार के मामले में एक साथ 79वें स्थान पर रखा गया है। टीआई के सर्वेक्षण में दोनों देशों ने 40-40 अंक हासिल किये हैं। पिछले साल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2015 की रपट में भारत 38 अंक हासिल करके 76वें स्थान पर था। पिछले साल के सीपीआई सर्वेक्षण में कुल 168 देशों को शामिल किया गया था, जबकि इस साल इस सर्वे में 176 देश शामिल हैं। टीआई के इंडेक्स-2016 के अनुसार कुल 176 देशों मे से करीब दो तिहाई देशों की भ्रष्टाचार रैंकिंग में गिरावट आई है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2016 (सीपीआई-2016) के लिए कई स्तरों पर सर्वेक्षण के बाद देशों को अंक प्रदान करता है जिसके आधार पर सर्वेक्षण में शामिल देशों में भ्रष्टाचार की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के प्रमुख रामनाथ झा ने बताया कि सर्वेक्षण में शामिल देशों की संख्या बढ़ने से भारत की सीपीआई रैंकिंग में गिरावट आई है। पिछले साल इस सर्वे में 168 देश शामिल थे, जिसमें भारत 76वें स्थान पर था, जबकि इस साल इसमें कुल 176 देश शामिल किये गये हैं जिसमें भारत 79वें स्थान पर है। टीआई की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार 2016 के इंडेक्स में भारत के स्वच्छता एवं पारदर्शिता अनुमान में दो अंकों की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन भ्रष्टाचार रैंकिंग में यह तीन स्थान नीचे चला गया है। पिछले साल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2015 में भारत 38 अंकों के साथ 76वें स्थान पर था जबकि इस साल यह 40 अंकों के साथ 79वें स्थान पर है। इससे पहले 2014 के सीपीआई सर्वे में कुल 174 देश शामिल किये गये थे, जिसमें भारत 38 अंकों के साथ 85वें स्थान पर था
। प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, सीपीआई-2016 के विभिन्नि सर्वेक्षणों में भ्रष्टाचार-रोधी कार्रवाई, भ्रष्टाचार के मामलों की निगरानी की कमी, नागरिक समाज के लिए घटते स्थान, संगठित एवं बड़े भ्रष्टाचार, रोजमर्रा के जीवन में बढ़ते भ्रष्टचार और सरकार के प्रति लोगों के कम होते भरोसे, लोकत्रंत के फायदे और कानून की सख्ती आदि कारकों को शामिल किया गया था।