नयी दिल्ली, जलवायु परिवर्तन भारत में 85 प्रतिशत से अधिक जिले चक्रवात, बाढ़, सूखे और गर्मी के संकट से प्रभावित रहते हैं और जलवायु परिवर्तन से ऐसी प्राकृतिक आपदायें अधिक विनाशकारी होती जा रही हैं। यह बात आईपीई ग्लोबल और एसरी-इंडिया की शुक्रवार को जारी एकअध्ययन रिपोर्ट में कही गयी है।
अध्ययन में यह भी पाया गया है कि देश के 45 प्रतिशत जिले जो कभी सूखा-प्रवण होते थे, वहां बाढ़ का प्रकोप दिखने लगा है , इसी तरह जहां पहले बाढ़ की प्रवणता थी वहां सूखे के प्रकोप ने स्थान लेना शुरू कर दिया है। आईपीई ग्लोबल में जलवायु परिवर्तन और स्थिरता संबंधी कार्य-प्रभाग के प्रमुख और इस अध्ययन रिपोर्ट के लेखक अविनाश मोहंती ने कहा,
” देश में हर 10 में से नौ लोग आज जलवायु संबंधी विनाशकारी घटनओं के जोखिम में हैं, यह पिछली एक सदी में वायुमंडल के तापमान में 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का परिणाम है।”
रिपोर्ट के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं की तीव्रता आवृत्ति, और इनके अप्रत्याशित रूप से घटित होने की प्रवृत्तियां चार गुना बढ़ गई हैं। इस अध्ययन में वर्ष 1973 से 2023 तक के 50 साल के कालखंड में चरम जलवायु घटनाओं की एक सूची संकलित कर करके उनकी जटिलताओं और परिवर्तनशील रुझानों और स्वरूपों की खोज करते हुये एक विस्तृत जिला-स्तरीय मूल्यांकन किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशक में ही इन जलवायु चरम सीमाओं में पांच गुना वृद्धि देखी गई है। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि भारतीय जिलों का समग्र जलवायु जोखिम परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। इस अध्ययन को ईएसआरआई-इंडिया और उसके सहयोगी आईपीई ग्लोबल द्वारा आयोजित जलवायु प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन के पूर्ण सत्र में जारी किया किया गया।
रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से देश की कृषि और उद्योगों तथा अवसंरचाना को जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से बचान के लिए अधिक विवरणात्मक जोखिम-आकलन को अपनाने और जलवायु-जोखिम वेधशालायें और अवसंरचना जलवायु कोष स्थापित करने की सिफारिशें की गयी हैं।
रिपोर्ट के अनुसार बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और असम के 60 प्रतिशत से अधिक जिले एक से अधिक चरम जलवायु घटनाओं का सामना कर रहे हैं।
आईपीई ग्लोबल अध्ययन में पाया गया कि पूर्वी क्षेत्र के जिले अत्यधिक बाढ़ की घटनाओं के लिए अधिक प्रवण हैं, इसके बाद भारत के उत्तर-पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्र हैं। इन जिलों में अत्यधिक बाढ़ की घटनाओं में 4 गुना वृद्धि हुई है।
एसरी इंडिया के प्रबंध निदेशक, अगेंद्र कुमार ने कहा, “ नीतिगत हस्तक्षेपों के लिए भविष्य के जलवायु के अनुमानों को समझना हो या इनके संबंध में प्रकृति-आधारित समाधान, तकनीकी समाधान या सामाजिक समाधान जैसे हस्तक्षेप के लिये कुशलतापूर्वक योजना बनाना, भौगोलिक सूचनायें महत्वपूर्ण हैं। ”