नई दिल्ली, चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि वह दोषी लोगों के चुनाव लड़ने पर आजीवन पाबंदी लगाए जाने और न्यायपालिका एवं कार्यपालिका में उनका प्रवेश रोकने के पक्ष में है। आयोग ने यह भी कहा कि वह जन प्रतिनिधियों, लोक सेवकों और न्यायपालिका के सदस्यों पर आपराधिक मामलों का फैसला करने के लिए संविधान की भावना के अनुरूप विशेष अदालतें गठित किए जाने के भी पक्ष में है। एक जनहित याचिका के जवाब में सोमवार को दाखिल किए गए अपने हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा है कि याचिकाकर्ता-दिल्ली भाजपा प्रवक्ता एवं अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा उठाए गए मुद्दे विरोधात्मक नहीं हैं।
दरअसल, पीआईएल में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के लोगों के खिलाफ आपराधिक मामलों के मुकदमे के लिए विशेष अदालतें गठित किए जाने की मांग की गई है। चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधियों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता एवं अधिकतम उम्र तय किए जाने के लिए निर्देश के सिलसिले में कहा कि यह मुद्दा विधायिका के दायरे में है और इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत होगी। इसने कहा कि यह जिक्र करना मुनासिब है कि जवाब देने वाले प्रतिवादी के ज्यादातर प्रस्तावों या सिफारिशों का विधि आयोग ने अपनी 244वीं और 255वीं रिपोर्ट में समर्थन किया है। हालांकि, ज्यादातर प्रस्ताव या सिफारिशें केंद्र सरकार के विचाराधीन हैं या अब तक उन्हें मंजूरी नहीं मिली है। आयोग ने कहा कि यह राजनीति को संवैधानिक और कानूनी ढांचे के अंदर अपराधमुक्त करने की पुरजोर हिमायत करता रहा है। गौरतलब है कि तीन मार्च को उच्चतम न्यायालय ने सरकार और चुनाव आयोग को दोषियों को चुनाव लड़ने से आजीवन प्रतिबंधित करने तथा उन्हें न्यायपालिका और कार्यपालिका में प्रवेश करने से रोकने के लिए दायर एक याचिका पर रूख बताने को कहा था।