नमो घाट पर काशी की काष्ठ-कला बनी मुख्य आकर्षण

वाराणसी, धार्मिक नगरी काशी में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को साकार कर रहे काशी तमिल संगमम् 4.0 के चौथे संस्करण में नमो घाट इन दिनों सांस्कृतिक रंगों से सराबोर है। उत्तर भारत की प्राचीन परंपराओं और तमिल संस्कृति के गहन जुड़ाव को जीवंत रूप देने वाला यह आयोजन ‘तमिल करकलाम’ (तमिल सीखो) थीम पर आधारित है।
इनमें स्टॉल संख्या 29 सबसे अधिक चर्चित और लोकप्रिय रहा, जिसे वाराणसी के पारंपरिक काष्ठ-कारीगरों ने सजाया है। यहाँ प्रदर्शित प्रत्येक कलाकृति काशी की सात पीढ़ियों पुरानी काष्ठ-कला परंपरा की जीती-जागती मिसाल है। इन कलाकृतियों के पीछे कारीगरों की संघर्ष-गाथा, समर्पण और सफलता की प्रेरक कहानी भी छिपी है।
वाराणसी के ओम प्रकाश शर्मा और नंद लाल शर्मा इस दुर्लभ कला के सातवीं पीढ़ी के वारिस और वर्तमान में शहर के इकलौते संरक्षक हैं। हाथों की महीन कारीगरी और वर्षों की साधना से ये कारीगर लकड़ी में जान फूंक देते हैं। पारंपरिक कारीगर होने के साथ-साथ ये दोनों शिक्षक भी हैं और एनआईएफटी रायबरेली सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्यशालाएं आयोजित कर इस विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं।
इनकी यात्रा हमेशा आसान नहीं रही। एक समय आर्थिक तंगी और घटती मांग के कारण दोनों गहरे निराशा में डूब गए थे। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से इनका हौसला बढ़ाया और अपनी विरासत को जीवित रखने की प्रेरणा दी। प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन से ही काशी तमिल संगमम् जैसे बड़े मंचों पर इनकी कला को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली।
नंद लाल शर्मा कहते हैं, “प्रधानमंत्री जी के प्रेरणा-संदेश ने हमें नई दृष्टि और दिशा दी। आज हमारी कला देश-विदेश में सराही जा रही है।” हैंडीक्राफ्ट्स की काष्ठ-कलाएँ न केवल भारत में लोकप्रिय हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी अपनी छाप छोड़ चुकी हैं। वर्ष 2022 के जी-7 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री द्वारा इनकी उत्कृष्ट कृति ‘राज गद्दी-राम दरबार’ को इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो को भेंट किया जाना वाराणसी की कला परंपरा के लिए गौरव की बात है।
स्टॉल का सबसे बड़ा आकर्षण पंचमुखी हनुमान जी की भव्य मूर्ति है, जिसे कारीगरों ने पूरी तरह हाथ से, बिना किसी मशीन के, छह महीने की कड़ी साधना में तैयार किया है। कदम और गूलर जैसी दुर्लभ लकड़ियों से बनी यह मूर्ति करीब 1.20 लाख रुपये की है और इसकी सुगंध चंदन जैसी है।
आगंतुक स्थानीय कला को हाथों-हाथ अपनाते दिख रहे हैं। एक दर्शक शिवम सिंह ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए लकड़ी के सुंदर चाबी के छल्ले खरीदे और खुशी जताई कि उन्हें इतनी सूक्ष्म, किफायती और वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी कलाकृति मिली। काशी तमिल संगमम् में काशी की यह अनुपम काष्ठ-कला एक बार फिर अपनी छटा बिखेर रही है और सांस्कृतिक संवाद को नई ऊंचाइयों तक ले जा रही है।





