केंद्रीय कैबिनेट ने नयी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर अपनी मुहर लगा दी. नयी योजना इस साल खरीफ फसलों के मौसम से शुरु की जाएगी.योजना के तहत खरीफ फसलों (प्रमुख फसल – धान, समय – मई से सितम्बर) और रबी फसलों (प्रमुख फसल – गेहूं, समय – नवम्बर से मार्च) के लिए अलग-अलग प्रीमियम की दर होगी. पूरे देश भर में खरीफ फसलों के लिए किसानों को एक समान 2 फीसदी (बीमित रकम का), और रबी के लिए एक समान 1.5 फीसदी (बीमित रकम का) की दर से प्रीमियम चुकाना होगा. पूरे नुकसान के बराबर मुआवजा मिलेगा. एक चौथाई मुआवजा, दावा दायर करने के तुरंत बाद और बाकी नुकसान की रिपोर्ट आने के बाद दिया जाएगा. मुआवजे की रकम का भुगतान बैंक अकाउंट के जरिए होगा. एक बार प्रीमियम चुकाने पर एक फसल कवर होगा.
नयी योजना में एक और बड़ा बदलाव किया गया है. पहले सिर्फ खड़ी फसल के नुकसान पर ही बीमा का फायदा मिलता था. लेकिन अब यदि बीजाई के बाद छोटे-छोटे पौधों को प्राकृतिक आपदा से नुकसान पहुंचता है या फिर काटने के बाद खेत में रखी फसल को चक्रवाती या बेमौसम बरसात से नुकसान होता है तो भी बीमा सुरक्षा का फायदा मिलेगा. एक बात और, बीमा योजना का फायदा केवल प्राकृतिक आपदा या कीड़े के हमले से नुकसान की सूरत में ही मिलेगा. इसके साथ ही बर्फबारी, जमीन धंसने या सैलाब से फसल को होने वाले नुकसान पर भी इस योजना का फायदा मिलेगा. बहरहाल, आगजनी या जानवरों के खेत में घुस जाने से फसलों को होने वाले नुकसान को इस योजना में शामिल नहीं किया गया है.
अब सरकार ने तय किया है कि जो किसान बैंक या वित्तीय संस्थानों से कर्ज ले या नहीं ले, सभी के लिए फसल बीमा योजना का विकल्प होगा. इसके साथ ही मुआवजे की सीमा खत्म करने और प्रीमियम की दर को कम और एक समान रख सरकार ने अगले तीन सालों में खेती योग्य जोत का कम से कम 50 फीसदी को नयी योजना के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा है. चूंकि कुल प्रीमियम का एक हिस्सा बराबर-बराबर आधार पर केंद्र और राज्य सरकार चुकाएंगे, इसीलिए सरकार का खर्च भी बढ़ेगा. केद्र सरकार का खर्च 3,100 करोड़ रुपये से बढ़कर 8,800 करोड़ रुपये पर पहुंचेगा. इतना ही खर्च राज्य सरकारों को भी उठाना होगा.
फसल बीमा योजना पहली बार 1999-2000 में लांच की गयी थी. 2010 में इसमें बदलाव किया गया. लेकिन इसमें कई तरह कमियां रही. पहला तो ये कि देश भर में अलग-अलग इलाके मे प्रीमियम की अलग-अलग दर थी. प्रीमियम की औसत दर 15 फीसदी थी. दूसरी और नुकसान चाहे जितना भी हो, लेकिन फसल की कुल कीमत के 11 फीसदी से ज्यादा मुआवजा नहीं देने का प्रावधान था. वहीं बैंकों से कर्ज पर बीमा सुरक्षा जरूरी किए जाने से योजना में शामिल होने वालों की संख्या सीमित थी. इन्ही सब कारणों से फसल बीमा योजना ज्यादा कामयाब नहीं हो पायी और आज की तारीख में कुल खेती योग्य जोत का 23 फीसदी ही फसल बीमा के दायरे में लाया जा सका.