नेता विरोधी दल पर रामगोविंद चौधरी को, मान्यता देने पर, राज्यपाल ने उठाये सवाल
March 29, 2017
लखनऊ, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने निवर्तमान विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नेता प्रतिपक्ष के रूप में रामगोविंद चौधरी को मान्यता दिये जाने पर सवाल खड़ा कर दिया है। इस संबंध में भारत का संविधान के अनुच्छेद 175 (2) अतंर्गत उन्होंने नवगठित विधानसभा के विचारार्थ एक संदेश भेजा है।
मंगलवार को राजभवन द्वारा भेजे गये संदेश में कहा गया है कि निवर्तमान विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय द्वारा 16वीं विधानसभा के अंतिम कार्यदिवस 27 मार्च को नवगठित 17वीं विधानसभा के लिए रामगोविंद चौधरी को जो नेता विरोधी दल के रूप में मान्यता दिये जाने का निर्णय लिया गया, उसके लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक औचित्य के प्रश्न पर नवगठित विधानसभा विचार करे। गौरतलब है कि विधानसभा सचिवालय के संसदीय अनुभाग द्वारा सोमवार को अधिसूचना जारी की गयी थी कि नवगठित 17वीं विधानसभा के लिये रामगोविंद चौधरी को नेता विरोधी दल के रूप में अभिज्ञात किया गया है। विधानसभा सचिवालय की इस अधिसूचना का संज्ञान लेते हुए राज्यपाल ने आज जो पत्र विधानसभा को भेजा है उसमें कहा गया है कि विधानसभा के सामान्य निर्वाचन के फलस्वरूप नवगठित विधानसभा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष द्वारा ही नेता प्रतिपक्ष को अभिज्ञात करने की हमेशा परम्परा रही है।
राज्यपाल का कहना है कि नेता विरोधी दल को अभिज्ञात करने का कोई ऐसा उदाहरण देश के किसी भी राज्य में उपलब्ध नहीं है जब किसी विधानसभा के कार्यकाल के अंतिम दिवस पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नवगठित अथवा आने वाली नई विधानसभा के लिए नेता विपक्ष को अभिज्ञात किया गया हो। वह भी उस समय जब कि नवगठित विधानसभा का अध्यक्ष भी निर्वाचित न हो सका हो। राम नाईक ने अपने पत्र के माध्यम से यह भी जानना चाहा है कि दीर्घ समय से देश के समस्त राज्यों की विधान सभाओं में नेता विपक्ष के चयन अथवा मान्यता के संबंध में चली आ रही स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा का अनुपालन उत्तर प्रदेश की नवगठित 17वीं विधान सभा के नेता विपक्ष के चयन अथवा अभिज्ञान के प्रकरण में क्यों नहीं किया गया। उनके अनुसार इस सवाल का जवाब विधानसभा सचिवालय द्वारा सोमवार को जारी अधिसूचना से स्पष्ट नहीं होता है। विधानसभा में नेता विरोधी दल को अभिज्ञात करना अथवा नहीं करना विधानसभा अध्यक्ष का विवेकाधिकार है न कि संवैधानिक बाध्यता। राजभवन की ओर से भेजे गये पत्र में यह भी कहा गया है कि 27 मार्च को जारी अधिसूचना में यह स्पष्ट नहीं है कि नेता विपक्ष के चयन का मामला यदि नवगठित विधानसभा के नये अध्यक्ष पर छोड़ा गया होता तो किस प्रकार की संवैधानिक शून्यता अथवा संकट अथवा असंवैधानिकता उत्पन्न होने की संभावना थी।