नेपाली संविधान में मधेसी, थारू और जनजातीय समुदायों के अधिकारों के लिये संघर्षरत संघीय समाजवादी फोरम-नेपाल के नेता एवं देश के
उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ नेता तरह-तरह के झूठ फैला रहे हैं। वे मधेसियों की आबादी के हिसाब से प्रांतों का परिसीमन करने का यह कहकर विरोध कर रहे हैं कि मधेसी प्रांत बाद में भारत से मिल सकता है। वे जानते हैं कि भारत के साथ मधेसियों के रोटी और बेटी के रिश्ते हैं। कोई वधू अगर नेपाली युवक से ब्याह के बाद भारत से यहां आएगी तो उसे सालों तक नागरिकता विहीनता की स्थिति में रहना होगा। सात साल बाद उसे अंगीकृत नागरिकता मिलेगी। इस बीच वह कोई नौकरी या पढ़ाई व्यापार आदि नहीं कर सकती। इस नियम से तो हमारे रोटी बेटी के संबंध तोड़ने की कोशिश नजर आती है। भौगोलिक परिसीमन होने से पहाड़ के चार-पांच हजार लोगों पर एक सांसद होगा जबकि तराई में एक लाख से अधिक लोगों पर एक सांसद। समानुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं होने से जनसंख्या में अधिक होने के बावजूद मधेसी हमेशा अल्पमत में बने रहेंगे।
उन्होंने संविधान निर्माण की पूरी प्रक्रिया को संदेहास्पद बताते हुए कहा कि भारतीय संविधान का मसौदा तैयार होने पर संविधान सभा में एक-एक पंक्ति पर बहस के बाद उसे पारित किया गया था लेकिन नेपाली संविधान तो पूरी तरह से किताब की शक्ल में आने के बाद एक ही बार में बिना किसी बहस के धोखे से पारित करा दिया गया। इसमें न केवल मधेसी और थारू बल्कि हिमालय में रहने वाले जनजातीय समुदायों के राजनीतिक अस्तित्व को खत्म कर दिया गया। उन्होंने कहा कि मधेसी, थारू और जनजातीय समुदायों खासकर लिम्बुआन समुदाय ने आपस में हाथ मिला लिये हैं। हमारे लिये यह अंतिम लड़ाई हैं और हम अभी नहीं तो कभी नहीं के सिद्धांत पर लड़ेंगे। मधेस के कुछ इलाकों में युवाओं द्वारा हथियार उठाने की धमकी दिये जाने की बात पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि करीब 110 दिन पहले शुरू हुए इस आंदोलन में सौ से अधिक जानें जा चुकीं हैं और सरकार अब भी गंभीरता नहीं दिखा रही है। संभव है कि कुछ युवाओं ने आवेश में ऐसा कुछ कहा हो लेकिन संयुक्त मधेसी लोकतांत्रिक मोर्चा अपनी लड़ाई को जनबल के सहारे शांतिपूर्ण एवं अहिंसक ढंग से ही लड़ेगा। उन्होंने पूछा, आखिर वे कितने लोगों की जान लेंगे? भारत- नेपाल सीमा पर आर्थिक नाकेबंदी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि नाकेबंदी का फैसला मधेसी आंदोलनकारियों का है और यह निर्णय 20 सितंबर से पहले करीब 40 दिन तक चले आंदोलन का सरकार पर कोई असर नहीं पड़ने के बाद लिया गया था ताकि पहाड़ में आंदोलन का असर पहुंचे और हमारी बात सुनी जाये लेकिन पहाड़ी नस्लवादी नेताओं ने एक साजिश के तहत मधेसी आंदोलन को कुचलने के लिये उसे सांप्रदायिक रंग देने तथा मधेसी विरोधी कार्रवाई के प्रति जनता का समर्थन हासिल करने के लिये खोखले राष्ट्रवाद एवं भारत विरोध का नारा बुलंद किया। इसी वजह से पूरे नेपाली मीडिया को देखें तो लगेगा कि भारत और नेपाल के बीच एक युद्ध सा छिड़ा है।