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नोटबंदी आखिर साबित हुआ, पीएम मोदी का फ्लाप शो, रिजर्व बैंक ने खोली पोल?

नई दिल्ली, 8 नवंबर 2016 की रात्रि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने के एेलान की हकीकत सामने आ चुकी है. एकबार फिर यह मोदी का तुगलकी फैसला यानि फ्लाप शो साबित हुआ.

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रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की आज जारी सालाना रिपोर्ट में दिए आंकड़ों के मुताबिक 98.6 फीसदी बंद नोट वापस आ गए तो फिर नोटबंदी की इतनी बड़ी कसरत का मतलब क्या निकला? कितने लोगों की जानें गईं, कितने बेरोजगार हो गये, कितने काम धंधे बंद हो गये, जो मानसिक प्रताड़ना लोगों को झेलनी पड़ी सो अलग.

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रिजर्व बैंक के आंकड़ों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी वाले पसंदीदा प्रयोग को करीब करीब फ्लॉप शो साबित कर दिया है. जब करीब-करीब 99 फीसदी बंद नोट वापस आ गए तो फिर नोटबंदी की इतनी बड़ी कसरत का मतलब क्या निकला. नकली नोट का आंकड़ा भी उम्मीद से बहुत कम निकला.

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500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की जो पसीना छुड़ा देने वाली कसरत हुई, उस कसरत की कीमत सिर्फ़ 16 हजार करोड़ रुपये ही निकली है. जमा हुए बंद नोट गिनने में 8 महीने लगा देने वाले रिजर्व बैंक ने फाइनली जब नोट गिनकर बताए तो ये पता चला कि ज़्यादातर नोट तो वापस जमा हो गए. ऐसे में सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या नोटबंदी के जरिए कालेधन को सफेद किया गया?

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पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी से रिज़र्व बैंक को 16 हज़ार करोड़ रुपये मिले, लेकिन नए नोट छापने में 21 हज़ार करोड़ रुपये लग गए. सरकार के अर्थशास्त्रियों को तो नोबल अवॉर्ड मिलना चाहिए.

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वहीं राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा कि नोटबंदी की वजह से कई लोगों की जान गई और आर्थ‍िक नुकसान भी हुआ. ऐसे में क्या प्रधानमंत्री अब इसकी जिम्‍मेदारी लेंगे.

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इसके बावजूद सरकार ये मानने को तैयार नहीं है कि वो नोटबंदी के तय टारगेट में फेल हुई है. रिज़र्व बैंक की सालाना रिपोर्ट आने और उसमें नोटबंदी के आंकड़े के सामने आने के बाद हो रही आलोचनाओं की वजह से ही वित्त मंत्री अरुण जेटली को तुरंत मीडिया के सामने आना पड़ा. सरकार का कहना है कि नोटबंदी के फेल हो जाने की बात करने वाले और उसकी आलोचना करने वाले कंफ्यूज़ हैं. ऐसे लोग नोटबंदी के पूरे उद्देश्य को समझ नहीं पा रहे हैं.

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